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चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास जीवन परिचय युद्ध शासनकाल और मृत्यु – History of Chandragupta Maurya in Hindi

आज के इस पोस्ट मे चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास जीवन परिचय History of Chandragupta Maurya in Hindi के बारे मे जानेगे। भारतीय इतिहास में ऐसे अनेकों शासक हुए जिन्होने भारत देश के छोटे खंडित राज्यों को एक साथ लाने और उन्हें एक ही बड़े साम्राज्य में मिलाने का श्रेय दिया जाता है तो उनमे चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास को गौरवमयी बनाने में अपना महव्पूर्ण योगदान दिया। उनके अद्भुत साहस और अदस्य शक्ति की गाथा आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है। चन्द्र गुप्त मौर्य भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, जिन्हें आज कई सदियों बाद भी लोग जानते हैं और उनके पराक्रम की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के सबसे सशक्त और महान शासकों में से एक थे, जिन्होंने अपने अद्भुत साहस, कुशल रणनीति से न सिर्फ भारत बल्कि इसके आसपास के कई देशों पर भी राज किया था। तो चलिये यहा चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास जीवन परिचय युद्ध शासनकाल और मृत्यु History of Chandragupta Maurya in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death जानेगे.

चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास जीवन परिचय युद्ध शासनकाल और मृत्यु

History of Chandragupta Maurya in Hindi

History of Chandragupta Maurya in Hindiभारत में कई सारे महान राजा ने अपनी प्रतिभा, कौशल्य, बुध्धिमत्ता, बहादुरी, साहस और आपनी शक्ति से भारत के इतिहास में अपना नाम कायम किया है।

भारत में कई सारे राजा हो चुके जैसे की पृथ्वीराज चौहान, सम्राट अशोक, समुद्रगुप्त, कृष्णदेवराय और महाराणा प्रताप जिन्हों ने भिन्न भिन्न काल में भारत में आपने साम्राज्य पर शासन किया है। इस प्रकार भारत आदि काल से शासको का देश रहा है। भारत को इन वीर शासको पर गर्व है।

चलिए ऐसे ही एक महान राजा के बारे में इस पोस्ट में बात करते है।

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य जिन्हों ने मौर्य वंश की स्थापना की थी और वह मौर्य वंश के प्रमुख राजा थे।

यह कहना बिलकुल भी गलत नही होगा की अगर चन्द्रगुप्त मौर्य नही होते तो मौर्य वंश की स्थापना कर पाना संभव नहीं होता। चंद्रगुप्त मौर्य एक ऐसे महान राजा थे जिनकी वहज से ही भारत में मौर्य वंश का उदय हुआ।

प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के स्थापना का पूरा श्रेय राजा चंद्रगुप्त मौर्य को ही जाता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतः 324 ईसा पूर्व की मानी जाती है, उन्होंने लगभग 24 सालो तक शासन किया और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्रायः 297 ईसा पूर्व में हुआ।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अद्भुत शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार कश्मीर से लेकर दक्षिण के डेक्कन तक और पूर्व के असम से पश्चिम के अफगानिस्तान तक किया था और मौर्य साम्राज्य को उस समय भारत का सबसे विशाल साम्राज्य बना दिया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने  संपूर्ण भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफल रहे। महान पराक्रमी और शक्तिशाली चन्द्रगुप्त महान ने सिर्फ अपनी बदौलत भारत के अलग-अलग स्वतंत्र राज्यों को एक करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत देश में सभी को एकजुट कर एकता के सूत्र में बांधा।

हालांकि, राज्यों को एकीकृत करने में सत्यपुत्र, चोल, कलिंग, चेरा और पंडया के तमिल क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया था।

चंद्रगुप्त मौर्य ने देश के अनेक छोटे-छोटे खंडित राज्यों को एक साथ मिलाया और इन्होंने एक बहुत ही बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। इनका यह साम्राज्य बहुत ही बड़ा था।

चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान मौर्य साम्राज्य पूर्व बंगाल और असम से पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से लेकर उत्तर भारत के कश्मीर और नेपाल तक फैला हुआ था,

चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य ना केवल इन्हीं देशों में अपितु दक्षिण भारत के पठारी इलाकों तक फैला हुआ था।

हालांकि, बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक ने करीब 260 ईसापूर्व में कलिंग में विजय हासिल की था, वहीं इस विजय के बाद ही सम्राट अशोक एक निर्दयी और क्रूर शासक से एक परोपकारी और दयालु शासक बन गए थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य के अद्भुत तेज और शौर्य को देखकर चाणक्य जैसे बुद्धिजीवी भी हक्का-बक्का रह जाते थे।

चन्द्रगुप्त जी बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, उनमें एक आदर्श, सफल, सच्चे और ईमानदार शासक के सभी गुण विद्यमान थे। वहीं चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु थे, जिनसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने सामाजिक और राजनीति शिक्षा ग्रहण की थी।

आइए जानते हैं इतिहास के इस महान योद्धा चन्द्र गुप्त मौर्य के बारे में –

चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय

Chandragupta Maurya Biography in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय
पूरा नाम :- Full Name Of Chandragupta Maurya – मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य
अन्य नाम :- Other Names For Chandragupta Maurya– सैंड्रोकोट्स, एंडोकोट्स
जन्म :- Birth Of Chandragupta Maurya – 340 ईसा पूर्व.
जन्म स्थान :- Birthplace Of Chandragupta Maurya– पिपलीवान (बिहार).
पिता का नाम :- Chandragupta Maurya’s Father’s Name – चंद्रवर्धन मौर्य या सूर्यगुप्त स्वार्थसिद्धि मौर्य था
माता का नाम :- Chandragupta Maurya Mother– मुरा
पत्नी का नाम :- Chandragupta Maurya Wives – दुर्धरा और हेलेना (Chandragupta Maurya Wife Helena).
संतान :- Chandragupta Maurya Son– चक्रवर्ती सम्राट बिंदुसार मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वाधिकारी :- Chandragupta Maurya’s Predecessor – धनानंद (नंद साम्राज्य).
चन्द्रगुप्त मौर्य के उत्तराधिकारी :- Successor To Chandragupta Maurya– सम्राट बिंदुसार मौर्य
साम्राज्य का नाम :- Empire Name – मौर्य साम्राज्य.
शासन अवधि :-  Government Period– 24 वर्ष.
धर्म/जाति :- Religion/Chandragupta Maurya Cast– हिंदू सनातन धर्म ( बाद में जैन धर्म अपना लिया था) ये क्षत्रिय वंश से थे।
मृत्यु :- Chandragupta Maurya Death– 297 ईसा पूर्व.
मृत्यु के समय आयु :- Age At The Time Of Chandragupta Maurya’s Death– 48 वर्ष.
मृत्यु स्थान :- Chandragupta Maurya’s Death Place– श्रवणबेलगोला (कर्नाटक).

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

Birth and Early life of Chandragupta Maurya in Hindi

चन्द्रगुप्त के बचपन, प्रारंभिक जीवन और वंशज के बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है एवं इस विषय में अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं।

कई भारतीय साहित्यकारों और इतिहासकारों ने चन्द्रगुप्त मौर्य  का सम्बन्ध नंदा राजवंश से बताया है। जबकि एक संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस में उन्हें “नंदनवय” मतलब नंद के वंशज भी कहा गया था।

वहीं अगर चन्द्रगुप्त की जाति के बारे में अगर बात करें तो मुद्राराक्षस में उन्हें कुल-हीन और वृषाला भी कहा गया है। जबकि भारतेंदु हरीशचंद्र के एक अनुवाद के अनुसार उनके पिता नंद के राजा महानंदा थे, जबकि उनकी माता का नाम मुरा था, इसी वजह से उनका उपनाम मौर्य पड़ा।

वहीं बुद्धिस्ट परम्पराओ के मुताबिक चन्द्रगुप्त, मौर्य क्षत्रिय समुदाय के ही सदस्य थे। फिलहाल, चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसापूर्व में पाटलीपुत्र (बिहार) में माना जाता है।

वे एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए थे जिनके पिता नंदा, नंदों की सेना के एक अधिकारी थे, चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म से पहले ही वे दुनिया छोड़कर चल बसे थे।

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुआ था, जो आज बिहार में स्थित है। उनकी पृष्ठभूमि हालांकि, अनिश्चित है।

कुछ दावे कहते है कि वह नंद के वंशज थे, उनकी माँ का नाम मुरा था, जबकि अन्य यह मानते हैं कि वह मयूर टोमेर्स के मोरिया जनजाति के थे।

उनका जन्म किसी तिथि को पाटलिपुत्र में हुआ था। इनकी माता की बात करें तो इनका नाम मुरा था। वही उनके पिता का नाम सर्वार्थसिद्धि था। बिंदुसार इनके उत्तराधिकारी थे।

वहीं जब चन्द्रगुप्त 10 साल के हुए तब उनकी मां मुरा का भी देहांत हो गया। वहीं इतिहास में ऐसा भी उल्लेखित है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता नंदा और उनके चाचा नवनादास, दोनों सौतेले भाई थे,

जो आपस में एक-दूसरे को फूंटी आंखों भी नहीं सुहाते थे, और नवनादास उनके पिता को हमेशा जान से मारने की फिराक में रहते थे।

नंदा के चन्द्रगुप्त मौर्य मिला कर 100 पुत्र थे, जिन्हें नवनादास मार डालते है बस चन्द्रगुप्त मौर्य किसी तरह बच जाते है और मगध के साम्राज्य में रहने लगते है. यही पर उनकी मुलाकात चाणक्य से हुई.

इसके बाद से उनका जीवन बदल गया. चाणक्य ने उनके गुणों को पहचाना और तकशिला विद्यालय ले गए, जहाँ वे पढ़ाया करते थे. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने अनुसार सारी शिक्षा दी, उन्हें ज्ञानी, बुद्धिमानी, समझदार महापुरुष बनाया, उन्हें एक शासक के सारे गुण सिखाये.

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे उन्हें बिंदुसार नाम का बेटा हुआ, इसके अलावा दूसरी पत्नी देवी हेलना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम के पुत्र हुआ.

कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य की दुश्मन से रक्षा करने के लिए आचार्य चाणक्य उन्हें रोज खाने में थोडा थोडा जहर मिलाकर देते थे, जिससे उनके शरीर मे प्रतिरोधक छमता आ जाये और उनके शत्रु उन्हें किसी तरह का जहर न दे पाए. यह खाना चन्द्रगुप्त अपनी पत्नी के साथ दुर्धरा बाटते थे, लेकिन एक दिन उनके शत्रु ने वही जहर ज्यादा मात्रा मे उनके खाने मे मिला दिया,

उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी, दुर्धरा इसे सहन नहीं कर पाती है और मर जाती है, लेकिन चाणक्य समय पर पहुँच कर उनके बेटे को बचा लेते है. बिंदुसार को आज भी उनके बेटे अशोका के लिए याद किया जाता है, जो एक महान राजा था.

चंद्रगुप्त मौर्य की शिक्षा

Education of Chandragupta Maurya in Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य अपनी शिक्षा को प्राप्त करने योग्य नहीं थे, जिसके कारण यह अपना पूरा दिन इधर उधर केवल खेलने और अपने परिवार की देखरेख में ही बिता देते थे।

एक बार जब महा पंडित चाणक्य जी इस गांव के भ्रमण से निकल रहे थे, तब उन्होंने चंद्रगुप्त को देखा और यह चंद्रगुप्त को देखते ही उनकी शक्तियों को पहचान गए। इसके बाद उन्होंने तुरंत ही इनके पिता के समक्ष इन्हें खरीदने का प्रस्ताव रखा।

इनके पिता के स्थिति इतनी दयनीय थी कि इन्होंने चंद्रगुप्त को महा पंडित चाणक्य को गोद दे दिया। इसके बाद महापंडित चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को शास्त्र और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करवाया, जिसके कारण चंद्रगुप्त मौर्य इस संपूर्ण देश के प्रमुख ज्ञाता बन गए और जिन्होंने संपूर्ण देश पर राज भी किया।

चन्द्रगुप्त मौर्य और आचार्य चाणक्य की मुलाकात

Meeting of Chandragupta Maurya and Acharya Chanakya in Hindi

Meeting of Chandragupta Maurya and Acharya Chanakya in Hindiचंद्रगुप्त के मामाओं ने उसकी सुरक्षा की खातिर उसे एक गायों के ग्वाले को सौंप दिया। जब चंद्रगुप्त बड़ा हुआ तो ग्वाले ने उसे एक शिकारी को बेच दिया और शिकारी ने उसे रोजगार देकर काम पर रख लिया।

और एक दिन आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को खेलते हुए देखा और वहां से उसे अपने साथ पढ़ाने के लिए ले आए। हेमचंद्र के दिगंबर के अनुसार आचार्य चाणक्य ने मयूर समुदाय के मुखिया की पुत्री के साथ एक पुत्र को जन्म दिया।

और उस समय चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बना लिया और उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया। उसे शास्त्र, धर्म, वेद, सैन्य कलाओं, अर्थ, कानून इत्यादि का ज्ञान दिया

परंतु इसके बदले में, चाणक्य ने माता से कहा कि जब यह बच्चा जवान हो जाएगा तो इसे वे बाद में अपने साथ ले जाएंगे। इसके बाद चाणक्य जादू से पैसा कमाने के लिए चले गए और चंद्रगुप्त के जवान होने पर वापस लौट आये। उसको चाणक्य ने पढ़ाया लिखाया और उसे एक योद्धा बनाया।

चंद्रगुप्त मौर्य का बचपन

Childhood of Chandragupta Maurya in Hindi

यदि हम अनेकों प्रकार के शासकों इत्यादि के हादसों को देखें तो हमें यह पता चलेगा कि चाणक्य जी नंद वंश के विनाश के लिए बहुत ही शक्तिशाली और बुद्धिमान होने के साथ-साथ एक चालाक व्यक्ति की खोज कर रहे थे। जिसके दौरान यह मगध राज्य का परिभ्रमण कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि चंद्रगुप्त मौर्य एक दोस्त के साथ खेल रहे थे। तभी वहां पर महान पंडित चाणक्य जी आए और उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को देखा।

लोगों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि पंडित चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य के खेल में उनकी नेतृत्व को देखा और उसके पश्चात वे चंद्रगुप्त के नेतृत्व कौशल से इतने प्रभावित हो गए। चाणक्य जी ने उन्हें प्रशिक्षित करने का विचार बना लिया।

इसके पश्चात वे चंद्रगुप्त को विभिन्न स्तरों पर शिक्षा प्रदान करने से पहले चंद्रगुप्त को अपना पुत्र बनाना चाहा। इसके लिए उन्होंने चंद्रगुप्त को उनके पिता से खरीद लिया और उसके पश्चात चाणक्य जी ने चंद्रगुप्त को तक्षशिला लेकर चले गए।

चंद्रगुप्त मौर्य का वैवाहिक जीवन

Married life of Chandragupta Maurya in Hindi

धनानंद से युद्ध जीतने के बाद चंद्रगुप्त भारत के राजा बने गए थे और उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।, चंद्रगुप्त मौर्य की दो पत्नियां थी दुर्धरा और हेलेना। इन दोनों की अलग-अलग कहानियां है।

पहली पत्नी – दुर्धरा की कहानी

धनानंद से युद्ध करने से पहले धनानंद की पुत्री दुर्धरा ने चंद्रगुप्त को देखा। और पहली नजर में ही दुर्धरा को चंद्रगुप्त से मोहब्बत हो गई। चंद्रगुप्त ने धनानंद से युद्ध जीतने के बाद, दुर्धरा को अपनी धर्मपत्नी बना लिया।

दुर्धरा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम बिंदुसार था। कुछ इतिहासकार यह बताते हैं कि लगभग 2 साल पहले बिंदुसार के जन्म लेने से पहले दुर्धरा को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम केशनाक था। और इस बच्चे की मृत्यु, जन्म के कुछ ही घंटों के बाद हो गई थी।

दुर्धरा से उत्पन्न बच्चा बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। परंतु विधाता की अनहोनी को कौन टाल सकता था? बिंदुसार को जन्म देने के बाद उसकी माता दुर्धरा का देहांत हो गया।

चंद्रगुप्त ने दुर्धरा के चले जाने के बाद वर्षों तक शादी नहीं की। क्योंकि उन्हें दुर्धरा से बहुत ज्यादा मोहब्बत थी।

दूसरी पत्नी – हेलेना की कहानी

जब सेल्यूकस निकेटर ने भारत पर आक्रमण किया था तब चंद्रगुप्त ने उसे हरा दिया और हराने के बाद आचार्य चाणक्य की शर्तों के मुताबिक सेल्यूकस को अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त से करना था।

इस तरह से चंद्रगुप्त का दूसरा विवाह हुआ और उनकी दूसरी पत्नी का नाम हेलेना था जो कि एक ग्रीक थी। इतिहासकारों के मुताबिक हेलेना को कोई भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी।

चंद्रगुप्त ने जब राजकार्य बिंदुसार को सौंप दिया था तब हेलेना अपने मायके चली गई। और चंद्रगुप्त सन्यासी का रूप धारण करके चंद्रावली की पहाड़ियों में चले गए।

आचार्य चाणक्य का अपमान और प्रतिशोध की ज्वाला

Acharya Chanakya insult and flame of vengeance in Hindi

जब चंद्रगुप्त एक दिन अपने ग्वाले साथियों के साथ शाही कोर्ट का एक नकली खेल खेल रहा था, तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को दूसरे बच्चों को आदेश देते हुए देखा।

और उस समय चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बना लिया और उसे तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया। उसे शास्त्र, धर्म, वेद, सैन्य कलाओं, अर्थ, कानून इत्यादि का ज्ञान दिया,

दरअसल, जब भारत पर सिकन्दर ने आक्रमण किया था, उस समय चाणक्य तक्षशिला में प्रिंसिपल थे और तभी तक्षशिला और गान्धार के सम्राट आम्भि ने सिकन्दर से समझौता कर लिया था,

जिसके बाद चाणक्य ने भारत की अखंडता और संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से सिकंदर को भारत में आने से रोकने का आग्रह किया था, लेकिन उस समय सिकन्दर से लड़ने कोई आगे नहीं आया।

जिसके बाद चाणक्य ने सम्राट धनानंद से सिकंदर के प्रभाव को रोकने के लिए मद्द मांगी, लेकिन अहंकारी सम्राट धनानंद ने चाणक्य का अपमान कर दिया।

इसके बाद आचार्य चाणक्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपने सबसे बलशाली शिष्य सम्राट चंद्र गुप्त के साथ मिलकर  नंद साम्राज्य के पतन की शपथ ली थी।

कुछ तथ्य यह कहते हैं कि चंद्रगुप्त ने धनानंद की सेना का कमांडर बनकर विद्रोह कर दिया था। इस घटना के बाद चंद्रगुप्त और चाणक्य दोनों वहां से भाग निकले क्योंकि नंद की सेना उनके पीछे लग चुकी थी।

जब चंद्रगुप्त चाणक्य से नहीं मिले थे उससे पहले चाणक्य मगध के राजा धनानंद के यहां गए हुए थे। वहां पर बहुत सारे लोग और अन्य पंडित आए हुए थे। तो धनानंद ने आचार्य चाणक्य को भरी सभा से बाहर निकाल दिया।

आचार्य चाणक्य के गिरते ही उनकी शिखा (चोटी) खुल गई थी। यह देखते ही आचार्य चाणक्य ने भरी सभा के अंदर शपथ ली और कहा कि धनानंद, मैं तुम्हारे इस राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकूंगा। और जब तक यह नहीं हो जाता तब तक मैं अपनी शिखा नहीं बांधूगा।

आचार्य चाणक्य के इस प्रचंड क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला ने उन्हें एहसास करवाया कि उन्हें एक अच्छे इंसान की जरूरत है जो धनानंद के मरने के बाद राजा बन सके। और अखंड भारत का निर्माण कर सकें जहां पर हर व्यक्ति का मान सम्मान किया जाएगा।

चंद्रगुप्त मौर्य के मौर्य साम्राज्य की स्थापना

Establishment of the Maurya Empire of Chandragupta Maurya in Hindi

मौर्य साम्राज्य खड़े होने का पूरा श्रेय चाणक्य को जाता है. चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से वादा किया था, कि वे उसे उसका हक दिला कर रहेंगें, उसे नवदास की राजगद्दी पर बैठाएंगे. धनानंद से बच निकलने के बाद चाणक्य ने एक सेना बनाने की सोची। क्योंकि उनके पास कोई सैनिक नहीं थे तो उन्होंने गांव-गांव जाकर हर व्यक्ति को चंद्रगुप्त की सेना से जुड़ने के लिए कहा।

आचार्य चाणक्य की बातों पर लगभग सभी लोग विश्वास कर रहे थे और बहुत सारे लोग चंद्रगुप्त की सेना में भर्ती हो गए। उनके सैनिकों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।

परंतु चंद्रगुप्त मौर्य की यह सेना धनानंद की सेना के सामने बहुत छोटी थी। आचार्य चाणक्य की कुशाग्र बुद्धि और चंद्रगुप्त का अदम्य साहस धनानंद के पतन के लिए काफी था।

धनानंद के साम्राज्य का पतन

Fall of Dhanananda Empire in Hindi

322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त की सेना ने आचार्य चाणक्य की सलाह से धनानंद पर आक्रमण कर दिया। पिछली बार के युद्ध में हारे हुए चाणक्य और चंद्रगुप्त को पता था कि उन्हें राज्य की सबसे पहले बाहरी क्षेत्रों पर आक्रमण करके अधिकार जमाना चाहिए, उसके बाद राज्य के मुख्य भागों पर।

तो उनकी सेना ने बाहरी क्षेत्रों को जीतते हुए, पाटलिपुत्र पर विजय प्राप्त कर ली जो कि धनानंद के राज्य  की राजधानी थी। वहां पर उन्होंने कुसुमपुर (वर्तमान पटना) को घेर लिया और गुरिल्ला युद्ध नीति से धनानंद को हरा दिया।

वहीं नंद वंश के पतन के लिए चन्द्रगुप्त को जहां चाणक्य जैसे महान बुद्दिजीवी, यशस्वी, कूटनीतिज्ञ, दार्शनिक और विद्दान की जरूरत थी, तो वहीं चाणक्य को चन्द्रगुप्त जैसे एक बहादुर, साहसी और पराक्रमी योद्धा एवं सेनापति की जरूरत थी। इसलिए दोनों में नंद वंश का आस्तित्व मिटाने एवं एक सुदृढ़ एवं मजबूत मौर्य साम्राज्य की स्थापना के लिए मिलकर अपनी कुशल नीतियों का इस्तेमाल किया।

इसके लिए दोनों ने कुछ अन्य शक्तिशाली शासकों के साथ मिलकर गठबंधन किए और एक विशाल सेना तैयार कर मगध के पाटलिपुत्र में आक्रमण कर नंद वंश के आस्तित्व को मिटाने में विजय हासिल की।

इस तरह महान सम्राट चंद्रगुप्त ने चाणक्य के मार्गदर्शन से बेहद कम उम्र में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की और चाणक्य को अपने दरबार में मुख्य राजनीतिक सलाहकार एवं प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

मौर्य साम्राज्य का विस्तार

Expansion of Maurya Empire in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां पंजाब प्रान्त से प्रारंभ होती हैं। चंद्रगुप्त मौर्य से पहले पंजाब और सिंध के क्षेत्र में यूनानी शासकों का राज था, जिनका मुखिया सिकंदर था।

लेकिन 323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु के पश्चात ये लोग आपस में लड़ने झगड़ने लगे, जिससे यूनानीयों की शक्ति कमजोर पड़ गई, इसी का फायदा उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य ने 317 ईसा पूर्व तक पंजाब को अपने कब्जे में ले लिया।

एक यूनानी इतिहासकार जस्टिन लिखते है, कि सिकंदर की मृत्यु के बाद बचे हुए यूनानी शासकों को मौत के घाट उतार दिया गया और यूनानीयों पर आक्रमण करने वालों में मुख्य था,

चंद्रगुप्त मौर्य का सेल्यूकस और एंटीगोनस नामक सिकंदर के 2 सेनापतियों के मध्य युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध सिकंदर की मृत्यु के पश्चात उसके राज्य पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए था, इस युद्ध में सेल्यूकस की जीत हुई। 306 ईसा पूर्व सेल्यूकस का राज्याभिषेक हुआ था।

महत्वकांक्षी सेल्यूकस अपने साम्राज्य विस्तार हेतु भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई और चंद्रगुप्त मौर्य के साथ युद्ध किया, जिसमें आचार्य चाणक्य की कूटनीतिज्ञ और चंद्रगुप्त मौर्य के युद्ध कौशल ने सेल्यूकस को पराजित कर दिया।

इस युद्ध में हार के साथ सेल्यूकस और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के मध्य में एक संधि हुई जिसके अनुसार हेरात, कंधार, काबुल और बलूचिस्तान आदि राज्य सेल्यूकस ने मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को दिए।

चन्द्रगुप्त का विवाह एवं सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस से संधि

Marriage of Chandragupta and treaty with Seleucus, the commander of Alexander in Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य के साथ अपने रिश्तो को और अधिक मजबूत बनाने के लिए सेल्यूकस ने उसकी बेटी हेलेना का विवाह भी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया जो चंद्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी थी। इसके बदले में मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य सेल्यूकस के राजदूत मेगास्थनीज को उसके दरबार में जगह दी।

धीरे-धीरे चंद्रगुप्त मौर्य के अधिकार में संपूर्ण पश्चिमी भारत भी आ गया। रुद्रदामन शिलालेख के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के शासक पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में “सुदर्शन झील” का निर्माण करवाया था। सम्राट अशोक महान के प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि सोपारा भी चंद्रगुप्त मौर्य के क्षेत्राधिकार में था।

चंद्रगुप्त मौर्य ना कभी रुके, ना किसी के सामने कभी झुके। मौर्य साम्राज्य के विस्तार में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। लगभग 6 लाख सैनिकों के साथ चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण भारत को एक छत्र राज्य के अंदर लाकर खड़ा कर दिया था। इन सभी कार्यों को चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां के तौर पर देखा जा सकता हैं।

इस तरह सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने अलग-अलग टुकड़ों में बंटे सभी गणराज्यों को एकजुट कर उत्तरी और परिश्चमी राज्यों पर अपने मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया, हांलाकि वे कलिंग (वर्तमान उड़ीसा) और तमिल साम्राज्य पर अपना शासन करने में नाकामयाब साबित हुए।

हालांकि, चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते एवं इतिहास के सबसे शक्तिशाली एवं महान योद्धा सम्राट अशोक ने बाद में कलिंग और तमिल साम्राज्य पर विजय हासिल कर इसे भी अपने मौर्य साम्राज्य में मिला दिया था। इस तरह मौर्य साम्राज्य, उस समय भारत का सबसे सुदृढ़ और विशाल साम्राज्य बन गया था।

पश्चिमी भारत की विजय अभियान

Conquest of western India in Hindi

शकमहाक्षत्रप रुद्रदामन् के गिरनार अभिलेख (150 ईस्वी) से इस बात की सूचना मिलती है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत में सुराष्ट्र तक का प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत कर लिया था ।

इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि इस प्रदेश में पुष्यगुप्त वैश्य चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल (राष्ट्रीय) था और उसने वहाँ सुदर्शन नामक झील का निर्माण करवाया था ।

सुराष्ट्र प्रान्त के दक्षिण में सोपारा (महाराष्ट्र प्रान्त के थाना जिले में स्थित) नामक स्थान से चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है, परन्तु अशोक अपने अभिलेखों में इस प्रदेश को जीतने का दावा नहीं करता ।

अत: इससे ऐसा निष्कर्ष निकाला का सकता है कि सुराष्ट्र के दक्षिण में सोपारा तक का प्रदेश भी चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा ही विजित किया गया था ।

दक्षिण भारत विजय अभियान

South India conquest in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण भारत की विजय के सम्बन्ध में अशोक के अभिलेखों तथा जैन एवं तमिल स्रोतों से कुछ जानकारी प्राप्त होती है । दक्षिण भारत में कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश के कई स्थानों से अशोक के लेख मिलते हैं, जैसे- सिद्धपुर, ब्रह्मगिरि, जटिंगरामेश्वर पहाड़ी (कर्नाटक राज्य के चित्तलदुर्ग जिले में स्थित), गोविमठ, पालक्कि गुण्ड्ड, मास्की तथा गूटी (आन्ध्र प्रदेश के करनूल जिले में स्थित) ।

अशोक स्वयं अपने अभिलेखों में अपने राज्य की दक्षिणी सीमा पर स्थित चोल, पाण्ड्य, सत्तियपुत्र तथा केरलपुत्र जातियों का उल्लेख करता है । उसके तेरहवें शिलालेख से ज्ञात होता है कि दक्षिण में उसने केवल कलिंग की ही विजय की थी जिसके पश्चात् उसने युद्ध-कार्य पूर्णतया बन्द कर दिया ।

ऐसी स्थिति में दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक की विजय का श्रेय हमें या तो बिन्दुसार को अथवा चन्द्रगुप्त मौर्य को देना पड़ेगा । बिन्दुसार की विजय अत्यन्त संदिग्ध है और इतिहास उसे विजेता के रूप में स्मरण नहीं करता । अत: यही मानना तर्कसंगत लगता है कि चन्द्रगुप्त ने ही इस प्रदेश की विजय की होगी ।

चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण भारतीय विजय के विषय में जैन एवं तमिल स्रोतों से भी कुछ संकेत मिलते हैं । जैन परम्परा के अनुसार अपनी वृद्धावस्था में चन्द्रगुप्त ने जैन साधु भद्रबाहु की शिष्यता ग्रहण की तथा दोनों ‘श्रवणवेलगोला’ (कर्नाटक राज्य) नामक स्थान पर आकर बस गये।

यहीं चन्द्रगिरि नामक पहाड़ी पर चन्द्रगुप्त तपस्या किया करता था । यदि इस परम्परा पर विश्वास किया जाये तो यह कहा जा सकता है कि चन्द्रगुप्त अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उसी स्थान पर तपस्या के लिये गया होगा जो उसके साम्राज्य में स्थित हो ।

इससे श्रवणवेलगोला तक उसका अधिकार प्रमाणित होता है । तमिल परम्परा से ज्ञात होता है कि मौर्यों ने एक विशाल सेना के साथ दक्षिण क्षेत्र में ”मोहर” के राजा पर आक्रमण किया तथा इस अभियान में कोशर और वड्‌डगर नामक दो मित्र जातियों ने उसकी मदद की थी ।

इस परम्परा में नन्दों की अतुल सम्पत्ति का एक उल्लेख मिलता है जिससे ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तमिल लेखक मगध के मौर्यों का विवरण दे रहे हैं जो नन्दों के उत्तराधिकारी थे । इस परम्परा मैं मौर्यों द्वारा तमिल प्रदेश की विजय का विवरण सुरक्षित है,

यह विजय नि:सन्देह चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में हुई होगी । यहाँ उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त जैन तथा तमिल परम्पराओं को अनेक विद्वान् ऐतिहासिक नहीं मानते । अत: इनमें हम बहुत अधिक विश्वास नहीं कर सकते ।

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन

Rule of Chandragupta Maurya in Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य वर्तमान समय अफगानिस्तान, काबुल, कंधार, तक्षशिला और गांधार इत्यादि जगहों तक फैला हुआ था। परंतु धीरे-धीरे चाणक्य की कूट नीतियों के कारण चंद्रगुप्त का साम्राज्य वर्तमान बिहार से लेकर अफगानिस्तान तक और संपूर्ण भारत से लेकर कर्नाटक तक फैला हुआ था। बचे हुए क्षेत्रों में तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा इत्यादि ही रहे थे।

चंद्रगुप्त ने लगभग पूरे भारत पर अधिकार कर लिया और देश को एक इकाई बनाने की सोची। और यह बात उन्होंने अपने गुरु चाणक्य से सीखी कि उन्हें अपने देश को मजबूत बनाना है।

चंद्रगुप्त ने अपने राज्य में गुरुदेव चाणक्य की कही हुई बातों को और लिखी हुई अर्थशास्त्र की नीतियों को पूरी तरीके से अपनाया और प्राचीन भारत को एक मजबूत देश और सशक्त आर्थिक संपन्न भी बनाया।

चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था

Chandragupta Maurya rule System in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास / चन्द्रगुप्त मौर्य का योगदान बताते हुए यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखित “इंडिका” नामक पुस्तक से मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था का पता चलता है।

अधिकतर शक्तियां चंद्रगुप्त मौर्य के हाथ में थी, लेकिन शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्होंने मंत्री परिषद का गठन किया।

18 मंत्रियों वाली इस परिषद को 27 भागों में बांटा गया था, प्रत्येक भाग/विभाग का अलग विभाग अध्यक्ष था, जिनकी नियुक्ति चंद्रगुप्त मौर्य करता था। 4 सदस्यों की एक सलाहकार समिति भी थी, जिन्हें मंत्रिणः नाम से जाना जाता था, प्रत्येक का वेतन 48 हजार पण था।

न्यायिक व्यवस्था को ग्राम पंचायत स्तर पर विभाजित कर रखा था। फौजदारी और दीवानी नामक दो प्रकार के न्यायालय उस समय प्रचलन में थे। आर्थिक से लेकर कठोर दंड तक के प्रावधान की व्यवस्था थी, जिससे अपराधों में कमी हो सके। इसका न्यायाधीश खुद चंद्रगुप्त मौर्य था।

जैसा कि आपने ऊपर पड़ा चंद्रगुप्त मौर्य की सेना लगभग 6 लाख थी। 30,000 घुड़सवार, 9000 हाथी, 8000 रथ उस समय चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में शामिल थे।

शासन व्यवस्था और राज्य की संपूर्ण व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य के समय गुप्तचर थे, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों को भी शामिल किया गया। यह गुप्त चर आम जनता और अधिकारियों के बीच में रहते थे जो महत्वपूर्ण जानकारी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य तक पहुंचाते थे।

जो गुप्तचर संपूर्ण राज्य में भ्रमण करते रहते थे उन्हें संथारण के नाम से जाना जाता था जबकि वह गुप्तचर जो एक ही स्थान पर रहकर कार्य करते थे उन्हें संस्थिल नाम से जाना जाता था।

कई इतिहासकारों और पुस्तकों के विवरण से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में आय का मुख्य स्त्रोत कृषि आयकर था।

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में विद्यालय, चिकित्सालय, अनाथालय, किसानों के लिए भवन निर्माण, सेना और अन्य विभागों के लिए अलग-अलग भवन बने हुए थे।

सुशासन की स्थापना करने के लिए सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण मौर्य साम्राज्य को 6 भागों में विभाजित कर रखा था। जिसमें उत्तरापथ, सेल्यूकस से प्राप्त प्रदेश (काबुल ,बलूचिस्तान आदि), सौराष्ट्र, दक्षिणापथ, अवंती और मगध मुख्य थे।

शासक के रूप मे चंद्रगुप्त मौर्य

Chandragupta Maurya as Ruler in Hindi

चन्द्रगुप्त की उपलब्धियों को देखने के उपरान्त यह स्पष्ट हो जाता है कि वह एक महान् विजेता, साम्राज्य निर्माता तथा अत्यन्त कुशल प्रशासक था । एक सामान्य कुल में उत्पन्न होते हुए भी उसने अपनी योग्यता एवं कुशलता के बल पर अपने को एक सार्वभौम सम्राट बना लिया ।

वह भारत का प्रथम महान् ऐतिहासिक सम्राट था जिसके नेतृत्व में चक्रवर्ती आदर्श को वास्तविक स्वरूप प्रदान किया गया ।

यदि यूनानी स्रोतों पर विश्वास किया जाये तो कहा जा सकता है कि चन्द्रगुप्त की महान् सफलता अधिकांशतः उसकी वीरता, अदम्य उत्साह एवं साहस का ही परिणाम थी ।

जब हम देखते हैं कि चन्द्रगुप्त के पीछे कोई राजकीय परम्परा नहीं थी तो उसकी उपलब्धियों का महत्व स्वतः स्पष्ट हो जाता है । यूनानी दासता से देश को मुक्त करना, शक्तिशाली नन्दों का विनाश करना तथा अपने समय के एक अत्यन्त उत्कृष्ट सेनानायक सेल्युकस को नतमस्तक करना, निश्चित रूप से चन्द्रगुप्त की असाधारण सैनिक योग्यता के परिचायक हैं ।

उसने भारत की उस वैज्ञानिक सीमा को अधिकृत कर लिया जिसके लिये मुगल तथा ब्रिटिश शासक व्यर्थ का प्रयास करते रहे । चन्द्रगुप्त एक वीर योद्धा एवं साम्राज्य निर्माता ही नहीं था अपितु अत्यन्त योग्य शासक भी था ।

मौर्यों की प्रशासनिक व्यवस्था जो कालान्तर की सभी भारतीय प्रशासनिक व्यवस्थाओं का आधार कही जा सकती है, बहुत कुछ चन्द्रगुप्त की रचनात्मक प्रतिभा तथा उसके गुरु एवं प्रधान मंत्री कौटिल्य की राजनीतिक सूझबूझ का ही परिणाम थी ।

इस प्रकार चन्द्रगुप्त एक निपुण तथा लोकोपकारी शासन व्यवस्था का निर्माता था । उसका शासनादर्श बाद के हिन्दू शासकों के लिये अनुकरणीय बना रहा । यहाँ तक कि मुस्लिम तथा ब्रिटिश शासकों ने भी राजस्व व्यवस्था, नौकरशाही तथा पुलिस व्यवस्था के क्षेत्रों में मौर्य शासन के प्रतिमानों का ही अनुकरण किया ।

मौर्य प्रशासन के अधिकांश आदर्शों को आधुनिक युग के भारतीय शासन में भी देखा जा सकता है । चन्द्रगुप्त ने अपने व्यक्तित्व एवं आचरण से कौटिल्य के प्रजाहित के राज्यादर्श को कार्य रूप में परिणत कर दिया । उसकी सफलताओं ने भारत को विश्व के राजनीतिक मानचित्र में प्रतिष्ठित कर दिया ।

चन्द्रगुप्त द्वारा विदेशी कन्या से विवाह करना भारत के तत्कालीन सामाजिक जीवन में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन था । इससे उसके मस्तिष्क की उदारता सूचित होती है ।

यदि जैन परम्परा में विश्वास किया जाय तो कहा जा सकता है कि वस्तुतः चन्द्रगुप्त एक राजर्षि था जिसने अपने उत्तरकालीन जीवन में राज्य के सुख-वैभव का परित्याग कर तप करते हुए स्वेच्छा से मृत्यु का वरण किया ।

चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास में स्थान

Place of Chandragupta Maurya in History in Hindi

भारतीय इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। वह एक महान् विजेता एवं कुशल प्रशासक था। भारत की राजनीतिक एकता का प्रयास करने वाला वह प्रथम सम्राट था। इतना ही नहीं उसने भारतीय प्रदेशों से यूनानी शासकों को खदेड़ कर भारत के गौरव को बढ़ाया। आवागमन के साधनों का अभाव होते हुए भी चन्द्रगुप्त ने दक्षिण भारत के राज्यों पर अधिकार किया।

वह प्रथम उत्तरी भारत का सम्राट था, जिसने दक्षिण के राज्यों को स्वायत्त शासन प्रदान कर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया।

प्रजा की भलाई के लिये उसने अनेक कार्य किये। व्यापार और कृषि की उन्नत उसके शासनकाल में खूब हुई। वह कला प्रेमी था और सुदृढ़ केन्द्रीय शासन की स्थापना कर उसने भारत को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया।

चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म से प्रेरित होना

Chandragupta Maurya inspiration from Jainism in Hindi

मौर्य साम्राज्य के संस्थापक एवं इतिहास के सबसे महान योद्धा चन्द्र गुप्त मौर्य जब 50 साल के हुए तब वे जैन धर्म के विचारों से काफी प्रेरित हुए, और फिर बाद में उन्होंने जैन धर्म को अपना लिया और जैन संत भद्रबाहु को अपना गुरु बना लिया।

इसके बाद करीब 298 ईसा पूर्व में वे अपने पुत्र बिन्दुसार को अपने विशाल मौर्य साम्राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर कर्नाटक की गुफओं में चले गए जहां उन्होंने 5 हफ्ते तक बिना कुछ खाए पिए कठोर तप संथारा किया और बाद भूख की वजह से उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

महान शासक चन्द्रगुप्त की मौत के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने अपने विवेक एवं पूर्ण कुशलता के साथ मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला और इसको और अधिक मजबूत करने के प्रयास किए। वहीं बिंदुसार के समय में भी चाणक्य उनके दरबार के प्रधानमंत्री थे।

चाणक्य की कूटनीति और कुशल नीतियों की बदौलत मौर्य साम्राज्य ने एक नई ऊंचाईयां छू ली थीं। वहीं इसके बाद चंद्रगुप्त के पोते सम्राट अशोक ने भी अपने अ्द्भुत साहस और कुशल शासन के माध्यम से मौर्य साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत में कलिंग और तमिल आदि क्षेत्रों में भी करने में विजय हासिल कर ली थी।

इसलिए मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक बिंदुसार को इतिहास में एक ‘महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता’ भी कहा जाता है, क्योंकि वे महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक महान के पिता थे।

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु

Death of Chandragupta Maurya in Hindi

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईसा पूर्व को श्रवणबेलगोला की चन्द्रागिरि की पहाड़ियां (वर्तमान कर्नाटक, भारत) में हुई थी।

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बारे में कई तथ्य हैं। चंद्रगुप्त मौर्य ने जब अपना राज्य पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया तो वह कुछ जैन संतों के साथ दक्षिण भारत की ओर चले गए। वहां पर उन्होंने संन्यास धारण कर लिया।

चंद्रागिरी की पहाड़ियां जो कि वर्तमान समय में कर्नाटक में है वहां पर उन्होंने एक मंदिर का निर्माण करवाया जो अब चंद्रगुप्त बसरी के नाम से जाना जाता है। इनका देहांत श्रवणबेलगोला में चंद्रागिरि की पहाड़ियों पर हुआ था और वहीं पर उनकी समाधि है।

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास व जीवनी से जुड़े सवाल (FAQ)

Chandragupta Maurya History & Biography in Hindi

प्रश्न :- चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म कब हुआ था?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में हुआ था।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म स्थान कौनसा हैं?

उत्तर – चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म स्थान पिपलीवान (बिहार) हैं।

प्रश्न :- चंद्रगुप्त मौर्य किसका पुत्र था?

उत्तर :- इनकी माता की बात करें तो इनका नाम मुरा था। वही उनके पिता का नाम सर्वार्थसिद्धि था। यह बिंदुसार जी के उत्तराधिकारी थे।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता कौन थे?

उत्तर :- चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता का नाम सर्वार्थसिद्धि था।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी का क्या नाम था?

उत्तर :- ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने तीन बार विवाह किया था, जिसमें पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था जिससे चंद्रगुप्त मौर्य को बिन्दुसार प्राप्त हुआ।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य ने तीन बार विवाह किया था, जिसमें पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था, जिससे चंद्रगुप्त मौर्य को बिन्दुसार प्राप्त हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य का दूसरा विवाह सेल्युकस की पुत्री कार्नेलिया हेलेना से हुआ था, इनसे चन्द्रगुप्त मौर्य को एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम जस्टिन था। ऐसा कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के तीसरी पत्नी का नाम चंद्र नंदिनी था।

प्रश्न :- दुर्धरा किसकी पुत्री थी?

उत्तर :- दुर्धरा नंदवंशियो के पूर्वज महाराज घनानंद की पुत्री थी।

प्रश्न :- चंद्र मौर्य के कितने पुत्र थे?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य के 2 पुत्र थे – केशनाक और बिंदुसार। केशनाक के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु हो गई और बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र का नाम क्या था?

उत्तर :-  चक्रवर्ती सम्राट बिंदुसार मौर्य.

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य ने कितने वर्षों तक शासन किया था?

उत्तर :- 24 वर्ष.

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री कौन था?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री विष्णुगुप्त चाणक्य थे, जिन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न :- मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?

उत्तर :-  मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब हुई थी ?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईशा पूर्व के आसपास आध्यात्मिक संत गुरु भद्रबाहु के मार्गदर्शन में हुई थी।

प्रश्न :- चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के समय आयु कितनी थी?

उत्तर :- 48 वर्ष.

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौन थे?

उत्तर :- चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु महा पंडित चाणक्य थे।

प्रश्न :- मौर्य साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?

उत्तर :- मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य की थी।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य का कार्यकाल कब से कब है ?

उत्तर :- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 से 298 ईसा पूर्व के मध्य शासन किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 23 वर्षों के सफल शासन करने के पश्चात सभी प्रकार के सांसारिक सुख इत्यादि मोह मायाओं को त्याग दिया और इसके पश्चात वे खुद को एक जैन साधु में बदल दिए।

प्रश्न :- चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य कहा से कहा तक फैला था?

उत्तर :- चंद्रगुप्त मौर्य अपनी कुशल रणनीति के कारण न सिर्फ भारत पर ही नहीं बल्कि आसपास के अनेक देशों पर भी राज किया था। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान मौर्य साम्राज्य पूर्व बंगाल और असम से पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से लेकर उत्तर भारत के कश्मीर और नेपाल तक फैला हुआ था, चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य ना केवल इन्हीं देशों में अपितु दक्षिण भारत के पठारी इलाकों तक फैला हुआ था।

प्रश्न :- चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी कौन हुआ?

उत्तर :-बिंदुसार चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी हुआ था।

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