eClubStudy.Com

नौकरी, शिक्षा, करियर टिप्स, अध्ययन सामग्री, नवीनतम सरकारी नौकरियों, परीक्षा की तैयारी, सरकारी नौकरी परीक्षा, उत्तर कुंजी और अधिक अपडेट के लिए सर्वश्रेष्ठ वेबसाइट

History

महाराणा प्रताप का इतिहास जीवन परिचय हल्दीघाठी युद्ध और मृत्यु | History of Maharana Pratap in Hindi

आज के इस पोस्ट मे महाराणा प्रताप का इतिहास जीवन परिचय History of Maharana Pratap in Hindi के बारे मे जानेगे। इतिहास में त्याग, पराक्रम, निरंतर संघर्ष, दृढ़ता के लिए जिस वीर पुरुष को हमेशा याद किया जाता है, जब भी बात भारतीय इतिहास में वीर योद्धाओ और शासको का नाम आता है, तो उनमे महाराणा प्रताप का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वीरभूमि राजस्थान का एक-एक अंग वीरत्व के अनगिन उदाहरणों का साक्षी है पर उसका मेवाड़ क्षेत्र तो अपनी वीरता, धीरता, मातृभूमि-प्रेम, शरणागत वत्सलता एवं अडिगता में अपना कोई सानी नहीं रखता। बप्पारावल, पद्मिनी, मीराँबाई, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, महाराणा राजसिंह हाड़ी रानी तथा पन्नाधाय जैसे अनेक महान नाम इस पावन धरा से जुड़े हैं, जिनके तेजस्वी जीवन ने समाज को प्रेरणा दी। तो चलिये यहा महाराणा प्रताप का इतिहास जीवन परिचय हल्दीघाठी युद्ध और मृत्यु History of Maharana Pratap in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death जानेगे.

महाराणा प्रताप का इतिहास जीवन परिचय युद्ध और मृत्यु

History of Maharana Pratap in Hindi

History of Maharana Pratap in Hindiराजस्थान की इसी तपोभूमि कुछ ऐसी विशेषताएं रही हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ हैं. यहाँ के वीरो ने धरती, धर्म, स्त्री और असहायों की रक्षार्थ मरने को मंगल माना, यहाँ की वीरांगनाओ ने अपनी कंचन जैसी काया का मोह त्यागते हुए अपने हाथों अपना शीश काटकर अपने पतियों का प्रण पालन किया हैं. यहाँ के संतो ने जन जन की जड़ता को दूर करते हुए मानव धर्म की अलख जगाई हैं.

ऐसी देशभक्ति और वीरता से कुटकुट भरी मेवाड़ धरा पर स्वतन्त्रता प्रेमी और महान नायक महाराणा प्रताप का जन्म भूमि रही हैं. इस प्रदेश में जान तथा प्राण से बढ़कर प्रण की शाश्वत परम्परा रही हैं. अनूठी आन बान और शान वाला या राजस्थान प्रान्त शक्ति, भक्ति और अनुरक्ति की त्रिवेणी माना जाता हैं. यहाँ का इतिहास और शौर्य के लिए विश्वविख्यात हैं.

“जो दृढ राखे धर्म को, तीखी राखे करतार.”

यह शोर्य भूमि मेवाड़ का ध्येय वाक्य है. जिस पर महाराणा प्रताप मरते दम तक अटूट रहे. और अपनी स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से संघर्ष करते रहे.

उनके उपनामों से ही महाराणा प्रताप की महानता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मेवाड़ को इतिहास में शोर्य भूमि कहा जाता है. यह कई वीर योद्धाओं की जन्म एव कर्म भूमि रही है. सिसोदिया वंशज महाराणा प्रताप भी उनमे से एक थे. महाराणा प्रताप का इतिहास, मेवाड़ धरोहर की गौरव गाथा है. जिसे भारत के इतिहास में सुनहरे पन्नो से लिखा गया है.

महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान हैं. यह एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने मुगुलों को छटी का दूध याद दिला दिया था. इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गोरवान्वित हैं. ऐसे स्वाधीनता प्रेमी, योद्धाओं के योद्धा, भारत का वीर पुत्र, मेवाड़ केसरी, हिंदुआ सूरज, चेतक की सवारी, हिन्दुपति वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय प्रस्तुत करते है.

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

Maharana Pratap Biography in Hindi

महाराणा प्रताप एक ऐसे महान योद्धा व पराक्रमी शासक थे जिनके चर्चे आपने जरूर सुने होंगे. महाराणा प्रताप मेवाड़ के सबसे शक्तिशाली राजा थे. जो उदयपुर (मेवाड) में सिसोदिया राजपूत राजवंश के शासक हुए थे. वीर योद्धा महाराणा प्रताप का पूरा नाम “महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया” है. उन्होंने अपने जीवनकाल में लम्बे समय तक युद्ध किया और कई बार उन युद्धों में मुगल सेना से पराजित भी हुए लेकिन कभी हार नहीं मानी. उन्होंने जंगलों में रहना पसंद किया और घास फूँस खाकर अपना पेट भरा पर मुग़ल बादशाह अकबर की अधिनता (गुलामी) स्वीकार नहीं की.

महाराणा प्रताप की गिनती भारत के उन शक्तिशाली व महान सूरवीरों से की जाती है जिन्होंने अपने राज्य व देश की प्रजा के लिए आँन, भाँन, शाँन सब कुछ छोड़ दिया और रक्षा के लिए हमेशा तलवार की धार पर खड़े रहे. महाराणा प्रताप देशभक्ति व वीरता से भरी मेवाड़ धरा की आन है. जो स्वतन्त्रता प्रेमी एवं महानायक महाराणा प्रताप की जन्म सिद्ध भूमि रही हैं. जहां कई संतो ने देश में जन जन की जड़ता को दूर करने के लिए मानवता में धर्म की अलख जगाई. महाराणा प्रताप भी उन्हीं सज्जन सूरवीरो में से एक थे जिन्होंने अपनी काया का मोह त्यागते हुए अकबर के खिलाफ युद्ध में अपना योगदान दिया.

  • नाम :- महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)
  • पूरा नाम :- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
  • जन्म :- 9 मई 1540 ई, विक्रम संवत् 1597
  • जन्म स्थान :- कुम्भल गढ़ मेवाड़, राजस्थान
  • पिता का नाम :– महाराणा उदयसिंह
  • माता का नाम :– महाराणी जयवंताबाई
  • राष्ट्रीयता :- भारतीय (Indian)
  • धर्म :- हिन्दू, सनातन धर्म
  • राजवंश :-मेवाड़ का सिसोदिया राजवंश
  • गुरु (शिक्षक) :- श्री आचार्य राघवेंद्र
  • रानियाँ :- रत्नावती बाई परमार समेत कुल 11 पत्नियाँ
  • पुत्र :- ग्यारह रानियों के कुल 17 पुत्र हुए
  • राज्य का नाम :– मेवाड़ (चित्तौड़गढ़)
  • घोड़े का नाम :- चेतक (Chetak)
  • राज्याभिषेक :- 28 फरवरी 1572 गोगुन्दा व कुुंभलगढ़़ दुुर्ग में
  • मृत्यु (Died) :- 19 जनवरी 1597

महाराणा प्रताप का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

Birth and Early life of Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिं​ह सिसोदिया था। वे मेवाड़ राजवंश के शासक थे। जो सिसादिया वंशीय थे। इस वंश बप्पा रावल, राणा कुंभा, महाराणा संग्राम सिंह जैसे वीर हुए थे। महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597 को राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ महल में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था।

कुछ इतिहासकारों का यह भी मत है कि उनका जन्म पाली जिले के राजमहलों में यानी उनके मामा के घर पर हुआ था। लेकिन कर्नल जेम्स टॉड के मत कि महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ महल में हुआ था, को ज्यादा मान्यता दी गई है।

उनके कुल 23 छोटे भाई और दो सौतेली बहनें थीं। उनके पिता उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के राजा थे और उनकी राजधानी चित्तौड़ थी। प्रताप सिंह बचपन से ही बहुत बहादुर और साहसी थे. पूरा राज दरबार और मेवाड़ राज्य की जनता उनकी कुशलता और बहादुरी पर गर्व किया करती थी.

महाराणा प्रताप को बचपन में कीका नाम से पुकारा जाता था। इसके पीछे का कारण यह था कि महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता था। उन्हीं के साथ वे युद्ध कला सीखते थे। चूकि भील अपने पुत्र को कीका कहकर पुकारते हैं इसलिए वे महाराणा प्रताप को भी कीका नाम से पुकारते थे।

28 फरवरी 1572 ई में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई और उसी दिन महाराणा प्रताप का 32 वर्ष की आयु में गोगुन्दा में राज्यारोहण हुआ था.

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की महारानी अजबदे पंवार सहित कुल 11 पत्नियाँ थीं। उनके जयेष्ठ पुत्र का अमर सिंह था जो बाद में मेवाड़ का शासक बना था। किवंदती के अनुसार उनके 17 पुत्र थे।

बहुत ही कम समय में इन्होने घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र विद्या में श्रेष्ठता हासिल कर ली. मात्र सत्रह वर्ष की आयु में ही महाराणा प्रताप की शादी अजबदे पंवार नामक सुकन्या से हो गई, जो प्रताप की पहली पत्नी थी. वर्ष 1559 में इन्हें अमरसिंह के रूप में पुत्र धन की प्राप्ति हुई.

1567 में जब प्र महाराणा ताप मात्र 27 साल के थे उस समय अकबर की मुग़ल सेना ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया. किला छीन जाने से प्रताप सिंह अपने पूरे परिवार सहित कुम्भलगढ़ से गोगुन्दा आ बसे.

उसी समय महाराणा प्रताप ने मुगलों से लोहा लेने की ठान ली थी, मगर बड़े लोगों द्वारा स्थति को पक्ष में न देखकर महाराणा प्रताप को युद्ध करने से रोका.

महाराणा प्रताप का बचपन

Childhood of Maharana Pratap in Hindi

मात्र सोलह सत्रह वर्ष की अल्पायु में महाराणा प्रताप सैनिक अभियानों में जाने लगे. वागड़ के सांवलदास व उनके भाई कर्मसी चौहान को सोम नदी के किनारे युद्ध में परास्त किया. छप्पन क्षेत्र के राठौड़ो व गौड़वाड़ क्षेत्र को भी परास्त कर अपने अधीन कर लिया.

महाराणा प्रताप की वीरता की सर्वत्र प्रशंशा होने लगी. उसी समय महाराणा प्रताप का विवाह राव मामरख पंवार की पुत्री अजबदे महाराणा प्रताप की पत्नी बनी.

उसी समय महाराणा प्रताप ने देश की वर्तमान राजनितिक स्थति के बारे में जानकारी प्राप्त करना शुरू कर दिया. भविष्य को ध्यान में रखते हुए महाराणा प्रताप ने अपने मित्रो का चयन कर, उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया. 16 मार्च 1559 में महाराणा प्रताप को अजबदे की कोख से अमरसिंह नामक पुत्र की प्राप्ति हुई.

भारत में उस समय अकबर अपने सम्राज्य का विस्तार करने में लगा हुआ था. सम्पूर्ण राजपुताना उसके समक्ष झुक गया था. केवल एक मेवाड़ अडिग था. अकबर का मेवाड़ पर आक्रमण प्रतीक्षित था.

भविष्य में सघर्ष की योजना बनने लगी. महाराणा प्रताप अपने विश्वस्त मित्रों भामाशाह, ताराचंद, झाला मानसिंह आदि वीरो के साथ विजय स्तम्भ की तलहटी में सम्पूर्ण परिस्थतियो में विचार करते, मेवाड़ सुरक्षा की योजना बनाते.

इसी दौरान आपसी मन मुटाव के कारण महाराणा प्रताप का छोटा भाई शक्तिसिंह नाराज होकर अकबर के पास चला गया. अकबर के मेवाड़ आक्रमण की योजना पर वह चित्तोड़ लौट आया तथा समाचार दिया, युद्ध परिषद केनिर्णय के कारण महाराणा उदयसिंह सपरिवार उदयपुर चले गये.

महाराणा प्रताप को भी मन मसोस कर साथ जाना पड़ा. पीछे कमान जयमल राठौड़ एवं पत्ता चुण्डावत को सौपी गईं. अक्टूबर 1567 में अकबर ने चितोड़ पर आक्रमण कर दिया.

महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे महत्वपूर्ण व जरूरी तथ्य यह है कि मुगल बादशाह सम्राट अकबर मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप को अपने अधीन लाना चाहते थे जिसके लिए अकबर ने महाराणा प्रताप को अधीनता स्वीकार कराने के लिए चार प्रमुख राजदूतों को नियुक्त किया था.

जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. को जलाल खाँ को और उसी के साथ 1573 ई. में राजा मानसिंह को, सितम्बर 1573 ई. में भगवानदास को और दिसम्बर, 1573 ई. में राजा टोडरमल को भेजा था. लेकिन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने किसी नहीं सुनी और सबको वापस निराश ही भेजा, इसी तरह हमेशा महाराणा प्रताप मुगलों की अधीनता को नकारते जिसके परिणामस्वरूप “हल्दी घाटी” का सबसे बड़ा ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

महाराणा प्रताप की रानियों व उनके पुत्रों के नाम

Names of queens and their sons of Maharana Pratap in Hindi

  • रत्नावती बाई परमार – संतान – माल, क्लिंगु और गज
  • महारानी अजबदे पंवार – संतान – भगवानदास और अमरसिंह
  • चंपाबाई जंथी – संतान – सनवालदास, कल्ला और दुर्जन सिंह
  • अलमदेबाई चौहान – संतान – जसवंत सिंह
  • खीचर आशाबाई – संतान – राम सिंह और हत्थी
  • फूलबाई राठौर – संतान – शिखा और चंदा
  • लखाबाई – संतान – रायभाना
  • सोलनखिनीपुर बाई – संतान – गोपाल, साशा
  • जसोबाई चौहान – संतान – कल्याणदास
  • अमरबाई राठौर – संतान – नत्था
  • शहमति बाई हाडा – संतान – पुरा

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

Coronation of Maharana Pratap in Hindi

राजा उदय सिंह की एक और रानी थी धीरबाई जिनका नाम इतिहास में रानी भटियाणी है. धीरबाई मेवाड़ के सिंहासन पर अपने पुत्र जगमाल को बैठाने के लिए महाराणा उदय सिंह को मनाने में असफल रही. जिसके चलते उदय सिंह की मृत्यु के बाद जगमाल ने खुद को मेवाड़ का महाराणा घोषित किया.

लेकिन सामंतों ने महाराणा प्रताप का समर्थन किया और उन्हें मेवाड़ के सिंहासन पर बिठाया. इस प्रकार होली के दिन 28 फरवरी 1572 ई को महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ. महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के दौरान मेवाड़ के हालात काफी ज्यादा खराब थे. क्योंकि मुगलों के साथ लंबे समय से चल रहे युद्धों के कारण मेवाड़ की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा गई थी. जिसके कारण मेवाड़ के अधिकांश क्षेत्रों जिनमें चित्तौड़ भी शामिल था, सब पर मुगलों द्वारा कब्जा कर लिया गया था और मुगल बादशाह अकबर भी मेवाड़ के शेष बचे क्षेत्रों पर नियंत्रण रखना चाहता था.

यह शासन महाराणा प्रताप के लिए काँटों का मुकुट था, किन्तु स्वतंत्रता प्रेमी प्रताप ने इसे सहर्ष स्वीकार किया. वे तनिक भी विचलित नही हुए. प्रताप ने कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा को केंद्र बनाकर समस्त मेवाड़ राज्य को स्वतंत्र कराने की दृढ प्रतिज्ञा की.

जनमानस को स्वतंत्रता एवं संस्कृति की रक्षा के लिए प्रेरित किया. जनजाति वर्ग को संगठित कर उन्हें अपनी सेना का अंग बनाया. कुम्भलगढ़ से लगे गोडवाड़ भूभाग और अरावली की घाटियों में सैनिक व्यवस्था की. सिरोही व गुजरात से लगी सीमा व्यवस्था को संगठित किया.

उस समय चित्तौड़ के विध्वंस और उसकी खराब स्थिति को देखकर, कवियों ने उसे ‘बिना आभूषण के विधवा महिला’ का उदाहरण दिया था. महाराणा प्रताप के शासक बनने पर आमेर, बीकानेर और जैसलमेर जैसी रियासतों ने कभी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने माता की स्वतंत्रता को महत्व देते हुए अपने कबीले की प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष का रास्ता चुना. जिससे मेवाड़ पर मुगल आक्रमण के साथ ही अन्य झगड़ों में महाराणा प्रताप का साहस कम होने लगा.

ऐसी स्थिति में, महाराणा प्रताप ने सभी सांपों को इकट्ठा किया और उन्हें रघुकुल की गरिमा की रक्षा करने व मेवाड़ को पूरी तरह से स्वतंत्र बनाने का आश्वासन दिया और कहा कि जब तक मैं मेवाड़ को मुक्त नहीं कराऊँगा तब तक मैं राज महलों में नहीं रहेगा. और मैं पंच धातु (सोना, चांदी का तला और पीतल, कांसे) के बर्तन में खाना नहीं खाऊंगा. महाराणा प्रताप ने विश्वास के साथ, मेवाड़ के वफादार भक्तों और भीलों की मदद से, एक शक्तिशाली सेना का आयोजन किया और मुगलों से दूर रहने के लिए अपनी राजधानी गोगुन्दा से कुंभलगढ़ स्थानांतरित कर दी. वही दूसरी और अकबर ने मेवाड़ राज्य में अपनी सत्ता के खिलाफ महाराणा प्रताप द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी प्राप्त करना शुरू कर दिया था,

इसलिए अकबर ने महाराणा प्रताप के अधीन होने के वर्ष से ही राणा प्रताप की अधीनता स्वीकार करने के लिए एक के बाद एक चार दूत भेजने की पहल की. सितंबर 1572 ई में, महाराणा प्रताप के सिंहासन पर चढ़ने के छह महीने बाद, अकबर ने अपने बहुत ही चतुर और वाक्पटु दरबारी जलाल खान कोच्चि के साथ एक संधि प्रस्ताव रखा, लेकिन बात नहीं बनी उसके अगले वर्ष, अकबर ने प्रताप को वश में करने के लिए फिर से क्रमशः तीन अन्य दरबारियों मानसिंह, भगवंतदास और टोडरमल को भेजा, लेकिन महाराणा प्रताप किसी भी कीमत पर अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं हुए.

महाराणा प्रताप का शासन

Rule of Maharana Pratap in Hindi

जब प्रताप अपने पिता के सिंहासन पर बैठे, तो उनके भाई जगमल सिंह, जिन्हें उदय सिंह द्वारा क्राउन प्रिंस के रूप में नामित किया गया था, ने बदला लेने की कसम खाई और मुगल सेना में शामिल हो गए। मुगल बादशाह अकबर ने उनके द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए उन्हें जाहजपुर शहर के साथ पुरस्कृत किया।

जब राजपूतों ने चित्तौड़ छोड़ दिया, तो मुगलों ने इस स्थान पर अधिकार कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को अपने कब्जे में लेने के उनके प्रयास असफल रहे। अकबर द्वारा कई दूत भेजे गए थे, उन्होंने प्रताप के साथ गठबंधन करने के लिए बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन यह काम नहीं किया।

1573 में अकबर द्वारा छह राजनयिक मिशन भेजे गए थे लेकिन महाराणा प्रताप ने उन्हें ठुकरा दिया था। इन मिशनों में से अंतिम का नेतृत्व अकबर के बहनोई राजा मान सिंह ने किया था। जब एक शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के प्रयास विफल हो गए, तो अकबर ने शक्तिशाली मुगल सेना का सामना करने का मन बना लिया।

महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध

Battle of Haldighati between Maharana Pratap and Akbar in Hindi

History of Haldighati War in Hindiमार्च 1576 में मेवाड़ पर आक्रमण की योजना बनाने के लिए अकबर स्वयं अजमेर गया था. उसी समय, मानसिंह को मेवाड़ के खिलाफ भेजे जाने के लिए सेना का कमांडर घोषित किया गया था. 3 अप्रैल, 1576 ई को मानसिंह मेवाड़ को जीतने के लिए अपनी सेना के साथ रवाना हुआ. लगभग दो महीने तक मांडलगढ़ में रहने के बाद, मानसिंह ने अपना सैन्य बल बढ़ाया और खमनौर गाँव के पास पहुँच गया. उस समय मानसिंह के साथ ग़ज़िका बैदख़्शी, ख़्वाजा ग़यासुद्दीन अली, आसिफ ख़ान, सैयद अहमद ख़ान, सैयद हाशिम ख़ान, जगन्नाथ कच्छवाह, सैयद राजू, मेहतर ख़ान, भगवंत दास के भाई माधोसिंह, मुजाहिद बेग आदि थे.

मुगल इतिहास में जब समय एक हिंदू को इतनी बड़ी सेना के कमांडर के रूप में भेजा गया था. मुगल सेना के ‘कमांडर इन चीफ’ के रूप में मानसिंह के बनाये जाने से मुस्लिम दरबारियों में रोष फैल गया. बदायुनी ने अपने गुरु नकीब खान को भी इस युद्ध में जाने के लिए कहा, पर मुस्लिम गुरु नकीब खान ने जवाब दिया कि “यदि इस सेना का कमांडर हिंदू नहीं होता, तो मैं पहला व्यक्ति होता जो इस युद्ध में शामिल होता.” ग्वालियर के राजा रामशाह और दिग्गज योद्धाओं ने इस युद्ध के बारे में सुझाव दिया कि मुगल सेना के अधिकांश सैनिकों को पहाड़ी हिस्सों में लड़ने का अनुभव नहीं है.

इसलिए, उन्हें पहाड़ी भाग में घिराकर, नष्ट कर देना चाहिए. लेकिन मुगलों के युवा समूह ने इस राय को चुनौती दी और जोर देकर कहा कि मेवाड़ के बहादुरों को पहाड़ी क्षेत्र से बाहर आना चाहिए और खुले मैदान में दुश्मन सेना को हराना चाहिए. अंत में, मानसिंह ने बनास नदी के किनारे मोलेला में अपना शिविर स्थापित किया और प्रताप ने मानसिंह से छह मील की दूरी पर, हारसिंग गांव में अपना पड़ाव बनाया. सैयद हाशिम का नेतृत्व मुगल सेना में हरवाल (सेना का सबसे बड़ा हिस्सा) ने किया था व उनके साथ मुहम्मद बदख्शी रफी, राजा जगन्नाथ और आसफ खान भी थे.

महाराणा प्रताप की सेना के दो भाग थे, राणा प्रताप की सेना के अगुवा में हकीम खान सूरी, उनके पुत्रों के साथ ग्वालियर के रामशाह, पुरोहित गोपीनाथ, शंकरदास, चरण जैसा, पुरोहित जगन्नाथ, सलूम्बर के चूड़ावत कृष्णदास, सरदारगढ़ के भीमसिंह, देवगढ़ के रावत सांगा, जयमल, मेदतिया का पुत्र रामदास आदि थे. दूसरा भाग में महाराणा प्रताप द्वारा स्वयं सेना के केंद्र में थे, जिनके साथ भामाशाह और उनके भाई ताराचंद थे. 18, जून 1576 को सुबह महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी में गोगुन्दा की ओर जाने वाली सेना से आगे बढ़ने का फैसला किया.

युद्ध के पहले भाग में मुगल सेना के बल को तोड़ने के लिए, राणा प्रताप ने अपने हाथी लूना को आगे बढ़ाया जिसने मुगलों के हाथी गजमुख (गजमुख) का सामना किया गया था. गजमुख घायल होने के बाद भागने ही वाला था तब लूना के अपने महावत तीर से गजमुख घायल हो गए और लूना वापस लौट आए. इस पर महाराणा के प्रसिद्ध हाथी रामप्रसाद को मैदान में उतारा जाना था. युद्ध प्रताप की मोहरा सेना द्वारा एक भयंकर हमले के साथ शुरू हुआ. मेवाड़ के सैनिकों ने मुगल पक्ष के मोर्चे और वाम पक्ष को अपने तेज हमले और वीरतापूर्ण युद्ध कौशल से विचलित कर दिया.

बदायुनी के अनुसार, इस हमले के डर से, मुगल सेना लूणकरन के नेतृत्व में भेड़ के झुंड की तरह भाग गई. उस समय महाराणा प्रताप के राजपूत सैनिकों और मुगल सेना के राजपूत सैनिकों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया, तो बदायुनी ने मुगल सेना के दूसरे कमांडर आसफ खान से यह पूछा. आसफ खान ने कहा कि “आप तीर चलाते हैं. अगर राजपूत किसी भी पक्ष से मारा जाता है, तो इस्लाम को इसका फायदा होगा.” मानसिंह को मुगल सेना का सेनापति बनाने का बदायुनी भी विरोध कर रही थे, लेकिन जब उसने मानसिंह को बड़ी वीरता से लड़ते देखा और उसने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध किया, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ.

युद्ध के दौरान, सैयद हाशिम घोड़े से गिर गया व आसफ खान पीछे हट गया और मुगल सेना के मध्य भाग में शरण ली. जगन्नाथ कछवाहा भी मारा जाता है, लेकिन माधोसिंह कछवाहा उसकी मदद करने के लिए चंदावल सेना में पीछे की पंक्ति से एक टुकड़ी के साथ आता है. मुगल सेना के चंदावल में मिहत्तर खान के नेतृत्व में आपातकाल के लिए एक सुरक्षित दल रखा गया था. अपनी सेना को भागता हुआ देखकर, मिहिर खान चिल्लाते हुए आगे आया कहा कि “राजा सलामत है और स्वयं एक बड़ी सेना लेकर आ रहे हैं.” इसके बाद, स्थिति बदल गई और भागती मुगल सेना नए सिरे से नए जोश के साथ वापस लौट आई.

महाराणा प्रताप अपने प्रसिद्ध घोड़े चेतक पर लड़ रहे थे और मानसिंह मर्दाना नामक हाथी पर सवार थे. रणछोड़ भट्ट द्वारा संस्कृत ग्रंथ अमरवाक्य में, यह वर्णन किया गया है कि प्रताप ने मानसिंह के हाथी के माथे पर चेतक के आगे के पैरों को तेज किया और अपने भाले से मानसिंह पर हमला किया. लेकिन मानसिंह हौंडों में झुककर खुद को बचाने में सफल रहा, इस दौरान मुगलो का हाथी महावत मार दिया गया. पर मानसिंह के हाथी की सूंड पर तलवार से चेतक का एक पैर कट गया था.

महाराणा प्रताप को संकट में देखकर, बड़ी सादगी के झाला बीदा ने खुद शाही छत्र धारण करके युद्ध जारी रखा और महाराणा प्रताप युद्ध को पहाड़ों पर ले गए. हल्दीघाटी से कुछ दूरी पर बालीचा नामक स्थान पर घायल चेतक की मृत्यु हो गई, जहाँ उसका मंच अभी भी बना हुआ है. हल्दीघाटी के युद्ध में, महाराजा प्रताप की ओर से वीरता में जय बीदा, मेड़तिया के रामदास पुत्र, रामशाह की और से उनके तीन बेटे (शालिवाहन, भवानी सिंह और प्रतापसिंह) आदि शहीद हो गए. सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुडावत, घनराव के गोपालदास, भामाशाह, ताराचंद आदि प्रमुख सरदार थे जो युद्ध के मैदान में बीच गए थे.

जब युद्ध पूरी गति पर था, तो तब महाराणा प्रताप ने युद्ध की स्थिति बदल दी. राणा प्रताप ने युद्ध को पहाड़ों की ओर मोड़ दिया और मानसिंह ने मेवाड़ी सेना का पीछा नहीं किया. मुगलों ने प्रताप की सेना का पीछा क्यों नहीं किया इस संदर्भ में बदायुनी ने तीन कारण बताये थे

  • जून की चिलचिलाती धूप.
  • अत्यधिक थकान से लड़ने के लिए मुगल सेना की क्षमता का अभाव.
  • मुगलों को डर था कि राणा प्रताप पहाड़ों में घात लगाए बैठे थे और उनके अचानक आक्रमण से अत्यधिक सैनिकों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा.

इस प्रकार, अकबर की इच्छा के अनुसार, वह न तो प्रताप को पकड़ सकता था और न ही मार सकता था और न ही मेवाड़ की सैन्य शक्ति को नष्ट कर सकता था. अकबर का सैन्य अभियान विफल हो गया और परिणाम महाराणा प्रताप के पक्ष में था. युद्ध के परिणाम से निराश होकर, अकबर ने मानसिंह और आसफ खान को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया, जिसका अर्थ है कि उन्हें अदालत में जाने से वंचित कर दिया गया था. शनशाह अकबर की विशाल संसाधन सेना के गौरव को मेवाड़ी सेना ने ध्वस्त कर दिया था.

जब राजस्थान के राजा मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने और उनका पालन करने के लिए मर रहे थे. उस समय महाराणा प्रताप की स्वतंत्रता का विकल्प निस्संदेह एक सराहनीय कदम था.

हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास (21 जून 1576)

History of Haldighati War in Hindi

21 जून 1576 को ऐतिहासिक हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा की सेना और अकबर की सेना के मध्य हुआ. महाराणा की सेना ने अपने पराक्रम का परिचय दिया. हल्दीघाटी का युद्ध एक अनिर्णायक युद्ध रहा. क्योंकि इसमें ना अकबर जीता और ना ही प्रताप हारा था. अकबर का उद्देश्य, राणा प्रताप को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

ये एक हैरान करने वाली बात है कि, जिस दिन यह युद्ध शुरू हुआ उसी दोपहर को समाप्त हो गया. लेकिन, इस युद्ध में दोनों सेनाओं के करीब 17000 सैनिक मारे गए. स्वयं महाराणा प्रताप इस युद्ध में घायल हो गए थे. तब महाराणा का घोड़ा चेतक उनके लिए मसीहा बनकर आया. चेतक ने घायल अवस्था में महाराणा को युद्ध भूमि से बचा कर सुरक्षित स्थान पहुंचाया.

जब वह उन्हें युद्ध से बचाकर दौड़ रहा था. तब उनके रास्ते में एक बहुत बड़ी खाई आ गई थी. वहा पर चेतक ने संभव छलांग लगाकर महाराणा को सुरक्षित जगह पहुँचाया. जहां चेतक ने अपनी अंतिम सांस ली और शहीद हो गया. उस समय महाराणा के आंसू निकल आए. इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन अकबर के आश्रित इतिहासकार अलबदायूनी ने अपनी किताब “मुंतखाब उत तवारीख” में किया है. प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी के युद्ध को “मेवाड़ की थर्मोपोली” कहा है.

इस युद्ध से महाराणा प्रताप को भारी जानमाल का नुकसान हुआ था. इसके बाद उन्होंने जंगलों में जीवन यापन किया. वे जमीन पर सोते और सुखी और घास की रोटिया उनका खाना होता. परन्तु उन्हें झुकना स्वीकार नही था. इसलिए वे कभी भी अकबर के सामने झुके नही. जंगलों में रहते हुए उन्होंने अपनी सेना को फिर से सुदृढ़ किया. उन्होंने छापामार पद्धति (गोरिल्ला वेलफेयर) से लड़ाई लड़ी. और मुगलों से धीरे-धीरे अपने क्षेत्रों को फिर से छीन लिया.

इस समय महाराणा को आर्थिक सहायता की जरूरत थी. रणकपुर नामक स्थान पर राणा प्रताप की भेंट भामाशाह नामक सेठ से हुई. सेठ भामाशाह ने अपना अथाह धन देकर राणा प्रताप की आर्थिक सहायता की थी. इस कारण भामाशाह को इतिहास में मेवाड़ का उद्धारक, दानवीर के रूप में जाना जाता है.

दिवेर का युद्ध

War of Diver in Hindi

हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर और महाराणा की टक्कर का अंत नहीं, शुरुआत हुई थी. इसके बाद अकबर ने अपने साम-दाम-दंड-भेद सभी का प्रयोग किया. अकबर, महाराणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था. अक्टूबर सन 1582 में दिवेर (राजसमंद) का युद्ध हुआ. जिसमें महाराणा ने मुगलों की छावनियो पर आक्रमण किया. दिवेर नामक स्थान पर महाराणा ने मुगल सेना को परास्त कर दिया. राणा प्रताप की छवि एक पराक्रमी योद्धा के रूप में उभरी. दिवेर की जीत के बाद महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी नई राजधानी बनाई.

बादशाह अकबर अभी भी परेशान था. इस बार उसने, आमेर के राजा भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में. 5 दिसम्बर, 1584 को एक विशाल सेना मेवाड़ के विरुद्ध रवाना की. यह अकबर का राणा प्रताप के विरुद्ध अंतिम युद्ध (प्रयास) था. जो फिर विफल हुआ. जगन्नाथ भी राणा प्रताप को नही पकड़ पाया. वह प्रताप को पकड़ने में नाकामयाब रहा.

अब अकबर मेवाड़ के मामले में इतना निराश हो चुका था कि, छुटपुट कार्रवाई उसे निरर्थक लगी. उसके बाद राणा प्रताप ने एक-एक कर मुगलों से अपने अधिकांश क्षेत्र वापस छीन लिए. परन्तु वे केवल चित्तौड़गढ़ एवं मांडलगढ़ को मुगलों से नहीं छीन पाये. राणा प्रताप ने 1585 में अपने स्थायी जीवन का आरंभ चावंड (चामुण्डी नदी के किनारे) को मेवाड़ की नई राजधानी स्थापित करके किया. उन्होंने चावण्ड को ‘लूणा’ नामक बंजारे से विजित कर अपने अधीन किया था.

छप्पन की पहाड़ियों का युद्ध

Battle of Chappan Hills in Hindi

वही दूसरी और महाराणा प्रताप छप्पन की पहाड़ियों बसतिया बसाने में लगे हुए थे और उनके की इस योजना ने छप्पन के आसपास और मेवाड़ क्षेत्र के आसपास मुगलो को कमजोर कर दिया था। इसके बाद मुगलो और महाराणा प्रताप का सीधा युद्ध हुआ मेवाड़ के आसपास और छप्पन के पास की मुग़ल चौकियों में रसद समय पर नहीं पहुंचने पर वहा पर मुगलो के लिए ज्यादा समय तक पकड़ बनाना संभव नहीं रहा और महाराणा प्रताप ने आसपास के क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था।

महाराणा प्रताप का मालवा और गुजरात पर कब्जा

Maharana Pratap captured Malwa and Gujarat in Hindi

इसके आलावा महाराणा प्रताप ने मालवा और गुजरात की और अपनी सेना भेजनी शुरू कर दी थी और आसपास के मुग़ल चौकियों और उनके कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला करना शुरू क्र दिया था। वही दूसरी और भामाशाह ने मालवा पर चढ़ाई कर दी और जुर्माने सवरूप वहा के शासक से असरफियाँ लेकर महाराणा प्रताप को भेट कर दी।

शहबाजखां के जाने के बाद महाराणा प्रताप ने कुम्भल गढ़ में मुग़ल चौकियों पर अपना अधिकार जमा लिया और अकबर के लिए ये एक सन्देश भी था की दिवेर पर अब उसका कब्ज़ा जयादा दिनों तक नहीं रहने वाला था। इसके बाद महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को और मजबूत किया और विस्तार किया और उनके लिए रसद की आपूर्ति की और नए हथियार और धन की आपूर्ति की

इसके बाद प्रताप ने दिवेर के किले पर चढ़ाई कर दी जिससे घबराकर मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई और मुग़ल सेनापति सुल्तानखा वही पर पकड़ में आ गया और अमर सिंह ने भाले से ऐसा प्रहार किया की उसके प्राण पखेरू उसके घोड़े समेत उड़ गए। और इसी तरह ही महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को भी घोड़े समेत मार दिया। और इस युद्ध में मेवाड़ की विजय हुई।

महाराणा प्रताप जंगलों में जीवनयापन

Maharana Pratap lives in the jungles in Hindi

हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात राणा प्रताप के पास धन सम्पदा खत्म हो गई थी। राज्य आर्थिक विषमताओं से गिर गया। मेवाड़ पर मुगलों का शासन हो गया। ऐसे में महाराणा प्रताप को जंगलों में जीवन तक व्यक्ति करना पड़ा। कहा जाता है कि उस दौरान महाराणा प्रताप को घास की रो​टी तक खानी पड़ी थी। लेकिन राणा प्रताप ने प्र​तिज्ञा की थी कि वे जब तक मेवाड़ को मुगलों से आज़ाद नहीं करवा लेते, राजसी जीवन व्यतीत नहीं करेंगे।

खाने के लिए उचित भोजन प्राप्त करना जंगलों में एक कठिन परीक्षा थी। कई बार उन्हें बिना भोजन के ही जाना पड़ता था। उन्हें बिना भोजन के एक स्थान से दूसरे स्थान भटकना पड़ा और पहाड़ों और जंगलों में सोना पड़ा। दुश्मन के आने की सूचना मिलने पर उन्हें खाना छोड़कर तुरंत दूसरी जगह जाना पड़ा। वे लगातार किसी न किसी आपदा में फंसे रहते थे।

एक बार महारानी जंगल में अपना हिस्सा खाने के बाद भाखरी भून रही थीं उसने अपनी बेटी को खाने के लिए बचे हुए ‘भाकरी’ को रखने के लिए कहा, लेकिन उसी समय, एक जंगली बिल्ली ने हमला किया और राजकुमारी को असहाय रोते हुए छोड़कर उसके हाथ से ‘भाकरी’ का टुकड़ा छीन लिया।

भाकरी का वह टुकड़ा भी उसके भाग्य में नहीं था। बेटी को ऐसी हालत में देखकर राणा प्रताप को दुख हुआ; वह उसकी वीरता, शौर्य और स्वाभिमान से क्रोधित हो गया और सोचने लगा कि क्या उसकी सारी लड़ाई और बहादुरी इसके लायक है,

महाराणा प्रताप को भामाशाह का दान

Bhamashah donation to Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप के पूर्वजों के शासन में एक राजपूत सरदार मंत्री के रूप में कार्यरत था। वह इस विचार से बहुत परेशान था कि उसके राजा को जंगलों में भटकना पड़ा है और वह ऐसी कठिनाइयों से गुजर रहा है।

महाराणा प्रताप जिस कठिन समय से गुजर रहे थे, उसके बारे में जानकर उन्हें दुख हुआ। उन्होंने महाराणा प्रताप को बहुत सारी संपत्ति की पेशकश की जिससे उन्हें 12 वर्षों तक 25,000 सैनिकों को बनाए रखने की अनुमति मिल सके। महाराणा प्रताप बहुत खुश हुए और बहुत आभारी महसूस कर रहे थे।

महाराणा प्रताप ने शुरू में भामाशाह द्वारा दी गई संपत्ति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन उनके लगातार आग्रह पर, उन्होंने भेंट स्वीकार कर ली।

भामाशाह से धन प्राप्त करने के बाद राणा प्रताप को अन्य स्रोतों से धन मिलने लगा। उसने अपनी सेना का विस्तार करने के लिए सभी धन का उपयोग किया और चित्तौड़ को छोड़कर मेवाड़ को मुक्त कर दिया जो अभी भी मुगलों के नियंत्रण में था।

इसके बाद महाराणा प्रताप के पुराने मित्र भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति मेवाड़ के स्वाभिमान के लिए दान कर दी। जिससे महाराणा प्रताप को हिम्मत मिली और उन्होंने फिर से सेना का गठन किया और अन्तत: मेवाड़ को आज़ाद कराकर ही मानें। इसके बाद उन्होंने उदयपुर जिले के चावंड को मेवाड़ की नई राजधानी बनाया और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वहीं रहें।

महाराणा प्रताप का फिर से मेवाड़ पर कब्जा

Maharana Pratap again captured Mewar in Hindi

मिर्जा हाकिम की पंजाब में घुसपैठ और बिहार और बंगाल में विद्रोह के मद्देनजर अकबर ने इन समस्याओं से निपटने के लिए अपना ध्यान केंद्रित करने में लगे हुए थे । वही दूसरी और 1582 में, देवर में मुगल पोस्ट पर महाराणा प्रताप ने हमला किया और कब्जा कर लिया।

साल 1585 में अकबर लाहौर चला गया और अगले बारह वर्षों तक उत्तर-पश्चिम की स्थिति पर नजर रखने के लिए वहीं रहा। इस अवधि के दौरान कोई भी मुगल अभियान मेवाड़ नहीं भेजा गया था।

प्रताप ने इस स्थिति का लाभ उठाया और गोगुन्दा, कुम्भलगढ़ और उदयपुर सहित पश्चिमी मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया। उसने डूंगरपुर के निकट चावंड में एक नई राजधानी का निर्माण किया।

महाराणा प्रताप का अंतिम समय तक मुगलो से संघर्ष

Maharana Pratap struggle with the Mughals till the last moment in Hindi

महाराणा प्रताप मरते समय भी घास के बिस्तर पर लेटे हुए थे क्योंकि चित्तौड़ को मुक्त करने की उनकी शपथ अभी भी पूरी नहीं हुई थी। अंतिम समय में उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह का हाथ थाम लिया और चित्तौड़ को मुक्त करने की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप दी और शांति से मर गए।

अकबर जैसे क्रूर बादशाह के साथ उसके युद्ध की इतिहास में कोई तुलना नहीं है। जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल सम्राट अकबर के नियंत्रण में था, तब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को बचाने के लिए 12 साल तक लड़ाई लड़ी।

अकबर ने महाराणा को हराने के लिए कई तरह के प्रयास किए लेकिन वह अंत तक अपराजेय रहे। इसके अलावा, उसने राजस्थान में भूमि के एक बड़े हिस्से को मुगलों से भी मुक्त कराया।

उन्होंने इतनी कठिनाइयों का सामना किया लेकिन उन्होंने अपने परिवार और मातृभूमि के नाम को हार का सामना करने से बचाया। उनका जीवन इतना उज्ज्वल था कि स्वतंत्रता का दूसरा नाम ‘महाराणा प्रताप’ हो सकता था।

महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व

Personality of Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप श्रेष्ठ योद्धा और सच्चे जननायक थे. सभी धर्मों के लोग मातृभूमि की स्वाधीनता के संघर्ष में प्रताप के साथ थे. प्रताप ने अपने व्यक्तित्व से मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सब कुछ न्यौछावर करने वाला यौद्धा बना दिया.

इससे महाराणा प्रताप जनमानस के प्रातः स्मरणीय बन गये. अपने देश की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता के लिए सतत संघर्ष और विविध क्षेत्र में योगदान उन्हें महान सिद्ध करता हैं.

युद्धों में दिवंगत वीरों के उत्तराधिकारियों को प्रताप पिता की तरह स्नेह दिया और उनके पुनर्वास के लिए अपूर्व प्रयास कर मानवाधिकारों के संरक्षण का आदर्श स्थापित किया.

नारी सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रताप ने कई प्रयास किए. उनके प्रयासों की बदौलत मेवाड़ को भविष्य में जौहर जैसी त्रासदी नही झेलनी पड़ी.

प्रताप ने कैद की गई मुगल स्त्रियों को सुरक्षित लौटाकर नारी सम्मान का पाठ पठाया. अकाल दर अकाल जूझने वाली प्रजा और शासकों के लिए जल बचत और कम खर्च में जलाशय बनाने की तकनीक दी.

यही नही पर्यावरण सुरक्षा को प्रत्येक शासक और नागरिक के कर्तव्य के रूप में परिभाषित किया. प्रताप का योगदान उनकी वैश्विक दृष्टि का परिचायक था. इसी ध्येय से प्रताप ने विश्वविल्ल्भ नाम से वृक्ष आयुर्विज्ञान ग्रंथ की रचना करवाई.

संस्कारी जीवन ही सबकों अपेक्षित होता हैं, प्रताप ने इस उद्देश्य से व्यवहार आदर्श जैसा ग्रंथ लिखवाया. विद्वानों और दूरदर्शी लोगो को संरक्षण दिया.

इनमें संस्कृत विद्वान पंडित चक्रपाणी मिश्र प्रमुख थे. प्रताप के संरक्षण में लिखी गई राज्याभिषेक पद्धति भारतीय शासकों के लिए आदर्श बनी. मेवाड़ और गुजरात के शासकों सहित मराठा शासक भी अपना अभिषेक इसी पद्धति से करवाने लगे.

महाराणा प्रताप एक योद्धा के रूप में

Maharana Pratap as a Warrior in Hindi

महाराणा प्रताप एक योद्धा के रूप में एक साथ ही शक्तिशाली राजपूत योद्धा थे. महाराणा प्रताप का कद ऊंचाई 7 पॉइंट 5 फीट का था. उनका शरीर एकदम हष्ट पुष्ट एवं लोहे के सामान मजबूत था. राणा प्रताप का भाला 80 किलो का था और उनकी तलवार 25 किलो की थी. उनका कवच 100 किलो का था. कुल मिलाकर 200 किलों से अधिक वजनी हथियार एक साथ लेकर चलते थे. महाराणा प्रताप से स्वयं अकबर भी उनके समक्ष युद्ध करने से कतराता था.

महाराणा प्रताप के पास एक बहुत बड़ी सेना नहीं थी. ना ही उनके पास ज्यादा हथियार, घोड़े एवं हाथी थे. लेकिन उनके हौसले बुलंद थे. उन्होंने भीलो (एक जाति) को इकट्ठा किया उन्हें रण कौशल सिखाएं. और एक स्थाई सेना बनाई. महाराणा प्रताप जितने शक्तिशाली एवं वीर थे. उतना ही उनका घोड़ा (शहीद चेतक) और हाथी (रामप्रसाद) था. जिनकी इतिहास में अलग ही गाथाएं है. स्वयं अकबर भी उनके समक्ष युद्ध करने से कतराता था.

इन सभी कारणों से राणा प्रताप अब बादशाह अकबर की आंख का कांटा बन गया था. अकबर ने चित्तौड़ को तो जीत लिया था. लेकिन अब वह महाराणा को अपने अधीन करना चाहता था. इसी प्रयास में अकबर ने महाराणा को एक बार नहीं, दो बार नहीं, 4 बार समझौते के लिए अपने अलग-अलग सेनापतियों को भेजा.

महाराणा प्रताप और चेतक का इतिहास

History of Maharana Pratap and Chetak in Hindi

गीतों में राणा प्रताप को नीले घोड़े की सवारी वाला बताया जाता हैं, चेतक ही इनकों वों स्वामिभक्त घोडा था. जिसनें प्रताप का मरते दम तक साथ दिया. हल्दीघाटी के युद्ध में पूरी तरह घायल हो जाने के बाद भी तीन पैर पर दोडकर चेतक ने प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था.

यह ईरानी नस्ल का विख्यात अश्व था, जो गुजरात के भीमोरा गाँव से राणा प्रताप लाए थे. एक काठियावाड़ घोड़े व्यापारी  चेतक, त्राटक और अटक इन तीन नस्ल के घोड़ों को लेकर आए मेवाड़ आए थे.

घोड़ों की शक्ति परखने के बाद त्राटक घोडा प्रताप के छोटे भाई शक्ति को दे दिया तथा स्वयं चेतक को प्रताप ने अपना साथी चुन लिया. मानसिंह से युद्ध लड़ते समय उनके हाथी के पैर में लगी तलवार से चेतक का पिछला पैर पूरी तरह जख्मी हो गया था. तदोपरान्त वह प्रताप को रणभूमि से लेकर चित्तोड़ की ओर चल पड़ा,

एक बरसाती नाले पर से छलांग लगाते वक्त वह उस नाले में गिर गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई. प्रताप ने चेतक को इसी स्थान पर समाधि देकर वहां पर स्मारक बनाया, जो आज भी चित्तोड़ में चेतक स्मारक के रूप में जाना जाता हैं.

प्रताप की कई वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान हैं. चेतक की फुर्ती के कारण ही प्रताप ने कई युद्धों को सहजता से जीता. प्रताप अपने चेतक से पुत्र की भांति प्रेम करते थे.

महाराणा प्रताप के हथियार से जुड़े रोचक तथ्य

Interesting facts related to Maharana Pratap weapon in Hindi

  1. Maharana Pratap Bhala Weight 81 किलो वजन का था
  2. उनके छाती का कवच 72 किलो का था.
  3. उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों (Maharana Pratap Sword)का वजन मिलाकर 208 किलो था
  4. महाराणा प्रताप भारत के सबसे मजबूत योद्धाओं में से एक थे
  5. जिनकी ऊंचाई ((Maharana Pratap Height in Feet) 7 फीट 5 इंच थी।
  6. वह 360 किलो वजन ढोता था
  7. जिसमें 80 किलो वजन का भाला
  8. (Maharana Pratap Talwar Weight) 208 किलो वजन की दो तलवारें
  9. उनका कवच लगभग 72 किलो भारी था।
  10. उनका खुद का वजन(Maharana Pratap Weight) 110 किलो से ज्यादा था

महाराणा प्रताप के बारे में रोचक तथ्य

Interesting facts about Maharana Pratap in Hindi

  • महाराणा प्रताप सात फुट पांच इंच लंबे थे और उनका वजन 110 किलो था
  • उनके सीने के कवच का वजन 72 किलोग्राम और उनके भाले का वजन 81 किलोग्राम था
  • महाराणा प्रताप की ढाल, भाला, दो तलवारें और कवच का कुल वजन लगभग 208 किलो था।
  • उनकी ग्यारह पत्नियाँ, पाँच बेटियाँ और सत्रह बेटे थे। उनकी पत्नियों के नाम हैं अजबदे ​​पंवार, रानी लखबाई, रानी चंपाबाई झाटी, रानी शाहमतीबाई हाड़ा, रानी रत्नावतीबाई परमार, रानी सोलंखिनीपुर बाई, रानी अमरबाई राठौर, रानी फूल बाई राठौर, रानी आलमदेबाई चौहान, रानी जसोबाई चौहान और रानी खिचर आशाबाई।
  • महाराणा प्रताप और उनके परिवार को लंबे समय तक जंगल में रहना पड़ा और वे घास की बनी चपातियों पर जीवित रहे। एक दिन एक जंगली बिल्ली ने महाराणा की बेटी के हाथ से घास की रोटी छीन ली, तभी उसने अकबर के सामने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया।
  • एक बार महाराणा प्रताप के बेटे कुंवर अमर सिंह ने अब्दुर रहीम खानखाना के शिविर पर हमला किया, जो मुगल सेना के सेनापति थे और उनकी पत्नियों और महिलाओं को ट्रॉफी बंधकों के रूप में ले गए। जब प्रताप को अपने काम के बारे में पता चला, तो उसने उसे फटकार लगाई और सभी महिलाओं को रिहा करने का आदेश दिया। अब्दुर महाराणा के कृत्य का बहुत आभारी था और उसने तब से मेवाड़ के खिलाफ एक भी हथियार नहीं उठाने का संकल्प लिया। अब्दुर रहीम खानखाना कोई और नहीं बल्कि रहीम हैं जिनके दोहे और कविताएँ हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं।
  • महाराणा प्रताप गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का उपयोग करने में बहुत कुशल थे।
  • उनके पास चेतक नाम का एक बहुत ही वफादार घोड़ा था, जो महाराणा का पसंदीदा भी था। हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप को बचाने के प्रयास में चेतक अमर हो गया।
  • राणा प्रताप ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा, विशेषकर अपने बचपन को अरावली के जंगल में बिताया। आदिवासियों द्वारा प्रताप को कीका कहा जाता था; उन्हें राणा कीका के रूप में भी जाना जाता है।
  • महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक अपने मालिक के प्रति वफादारी के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि घोड़े के कोट पर नीले रंग का रंग होता है। चेतल ने अपने मालिक की जान बचाने के लिए 21 फीट चौड़ी नदी में छलांग लगाते हुए अपनी जान गंवा दी।
  • यह एक सच है कि प्रताप अपने घोड़े चेतक से प्यार करते थे, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चेतक की आंखें नीली थीं, यही कारण है कि महाराणा प्रताप को ‘नीले घोड़े के सवार’ के रूप में भी जाना जाता था।
  • चेतक के अलावा, एक और जानवर था जो महाराणा को बहुत प्रिय था – रामप्रसाद नाम का एक हाथी। हल्दीघाटी की लड़ाई के दौरान रामप्रसाद ने कई घोड़ों, हाथियों और सैनिकों को मार डाला और घायल कर दिया। कहा जाता है कि राजा मानसिंह ने रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात हाथियों को तैनात किया था।
  • महाराणा प्रताप के पास एक हाथी, रामप्रसाद भी था, जिसने मुगल सेना के दो युद्ध हाथियों को मार डाला था। जब अकबर ने रामप्रसाद को बंदी बनाया तो उसने न कुछ खाया पिया, 18वें दिन अपनी जान गंवा दी।
  • जहां महाराणा प्रताप अपने जीवनकाल में कई युद्धों में जीवित रहे, वहीं एक तीर से धनुष की डोरी को कसने के दौरान शिकार दुर्घटना में लगी चोट से उनकी मृत्यु हो गई।

महाराणा प्रताप की मृत्यु

Death of Maharana Pratap In Hindi

राणा प्रताप के आखिरी दिन. प्रताप के अंतिम बारह वर्ष और उनके उत्तराधिकारी राणा अमरसिंह (बड़ा पुत्र) के राजकाज के प्रारम्भिक 16 वर्ष (1613 तक) चावंड में बीते. चावंड 28 साल मेवाड़ की राजधानी रहा. चावंड गाँव से थोड़ी दूर राणा प्रताप ने अपने लिए महल बनवाए. उन्होंने चावण्ड के महल व घर वास्तुशास्त्र की ‘एकाशीतिपदवास्तु’ पद्धति (बस्ती के बीच में खुला चौक छोड़ना) पर बनाये गये थे.

19 जनवरी 1597 को धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए राणा प्रताप घायल हो गए थे. इसी दौरान उनका निधन हो गया था. चावंड से थोड़ी दूर बांडोली नामक गाँव में राणा प्रताप का अंतिम संस्कार हुआ. जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है. आज भी उन्हें वहा के स्थानीय समुदायों द्वारा पूजा जाता है.

महाराणा राणा प्रताप के शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था. प्रताप और उनकी प्रजा को अकबर सम्मान की दृष्टि से देखते थे. इसलिये हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उनकी सेना में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों एवम सामंतों को हिन्दू रीती अनुसार श्रद्धा के साथ अंतिम विदा दी जाती थी. जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी तब इनके मृत्यु की खबर सुनकर अकबर की आखों में भी आंसू आ गये थे।

अकबर के चेहरे की उदासी एवं निश्वास को देखकर वहीं सभा में उपस्थित कवि दुरसा आढ़ा के ने अकबर के भावों को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया –

अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी

गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी

नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली

न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली

गहलोत राणा जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी

निसा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी

हिन्दी अर्थ :-

“हे प्रतापसिंह तूने अपने घोड़े पर अकबर की अधीनता का चिह्न नहीं लगवाया और अपने चेतक को बेदाग ले गया, अपनी मेवाड़ी पगड़ी अकबर के सामने कभी तुमने झुकने नहीं दी वरन अनमी पाग लेकर चला गया। हमेशा मुगल सत्ता के विपरीत चलकर तूने अपनी वीरता की कीर्ति के गीत गवाए। जिस मुगलिया झरोखे के नीचे आज सारी दुनिया है तू कभी न तो उस झरोखे के नीचे आया, ना ही अकबर के नवरोज कार्यक्रम में उपस्थित हुआ । हे महान वीर! तू जीत गया । तेरी मृत्यु पर बादशाह ने आँखें मूँद कर, दाँतों के बीच जीभ दबाई, निःश्वासें छोड़ीं और उनकी आँखों में आँसू भर आए। गहलोत राणा ( प्रताप ) तेरी ही विजय हुई।”

दुरसा का यह छप्पय सुनकर सभासदों ने सोचा कि बादशाह दुरसा से नाराज होंगे लेकिन अपने मन की व्यथा को कविवाणी में साक्षात हुई देख बादशाह ने दुरसा को सम्मानित किया। ऐसे प्रणवीर प्रताप धन्य हैं। हे स्वातंत्र्य वीर! तेरी यह गाथा हमें युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी।

महाराणा राणा प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुग़ल का समझौता

Mewar and Mughal settlement after the death of Maharana Rana Pratap in Hindi

महाराणा राणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र अमर सिंह ने राजगद्दी संभाली. शक्ति की कमी होने के कारण अमर सिंह ने अकबर के बेटे जहाँगीर के साथ समझौता किया, जिसमे उन्होंने मुगलों की आधीनता स्वीकार की, लेकिन शर्ते रखी गई. इस आधीनता के बदले मेवाड़ और मुगलों के बीच वैवाहिक संबंध नहीं बनेंगे. यह भी निश्चित किया गया कि मेवाड़ के राणा मुग़ल दरबार में नहीं बैठेंगे, उनके स्थान पर राणा के छोटे भाई एवम पुत्र मुग़ल दरबार में शामिल होंगे.

इसके साथ ही चितौड़ के किले को मुगुलों के आधीन दुरुस्त करवाने की मुगलों की इच्छा को भी राजपूतों ने मानने से इनकार किया, क्यूंकि भविष्य में मुगल इस बात का फायदा उठा सकते थे.

इस तरह महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुगलों के बीच समझौता स्वीकार किया गया, लेकिन महाराणा प्रताप में जीते जी इस आधीनता को स्वीकार नहीं किया, विकट स्थिती में भी धैर्य के साथ आगे बढ़ते रहे.

महाराणा प्रताप का इतिहास व जीवनी से जुड़े सवाल (FAQ)

Maharana Pratap History & Biography FAQ in Hindi

प्रश्न :- महाराणा प्रताप कौन थे?

उत्तर :- महाराणा प्रताप मेवाड़ के व सिसोदिया राजपूत राजवंश के शासक थे.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था?

उत्तर :- 9 मई 1540ई में.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तर :- मेवाड़ के कुम्भलगढ में.

प्रश्न :- महाराणा के माता-पिता का नाम क्या था?

उत्तर :- महाराणा उदयसिंह और महाराणी जयवन्ताबाई.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या था?

उत्तर :- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की ऊंचाई कितनी थी?

उत्तर :- 7 फीट 5 इंच.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर :- 28 फरवरी, 1572ई में, गोगुन्दा में

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की तलवार कितने किलो की थी?

उत्तर :- 25 किलोग्राम.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप के कितने भाई थे?

उत्तर :- जगमाल सिंह, सागर सिंह, मीर शक्ति सिंह और कुँवर विक्रमदेव.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर :- महाराणा प्रताप की 11 पत्नियाँ थी.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की शादी कब हुई थी?

उत्तर :- 1557 ई में.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की पहली पत्नी कौन थी?

उत्तर :- महाराणा प्रताप की पहली पत्नी का नाम अजबदे पंवार था।

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की राजधानी कौन सी थी?

उत्तर :- महाराणा प्रताप द्वारा शासित मेवाड़ की अन्तिम राजधानी चावंड थी, जो कि इतिहास में प्रसिद्ध कस्बा है। यह सराड़ा तहसील में पड़ता है, जो उदयपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

प्रश्न :- महाराणा प्रताप के कितने पुत्र थे?

उत्तर :- 17 पुत्र.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर :- हल्दीघाटी के युद्ध में चोट लगने के वजह से.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था?

उत्तर :- 18 जून 1576 ई को.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का वजन कितना था?

उत्तर :- 115 किलोग्राम

प्रश्न :- महाराणा प्रताप को किसने मारा था?

उत्तर :- महाराणा प्रताप को किसी ने नहीं मारा था वे धनुष खींचने से घायल हुए थे जिसके कारण उनका देहांत हो गया.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई थी?

उत्तर :- धनुष को खींचने की कोशिश के दौरान घायल होनी की वजह से.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर :- 19 जनवरी 1597 को.

प्रश्न :- हल्दीघाटी का युद्ध कब और किसके बीच लड़ा गया था?

उत्तर :- 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर के प्रमुख सेनानायक मानसिंह के बीच.

प्रश्न :- हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह के सेनापति कौन थे?

उत्तर :- हकीम खान सूर.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप का भाला कहाँ रखा है?

उत्तर :- राजस्थान, उदयपुर शहर के सिटी पैलेस में.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम क्या था?

उत्तर :- चेतक.

प्रश्न :- महाराणा प्रताप जयंती कब मनाई जाती है?

उत्तर :- 9 मई को.

तो आपको यह पोस्ट महाराणा प्रताप का इतिहास जीवन परिचय हल्दीघाठी युद्ध और मृत्यु History of Maharana Pratap in Hindi Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Death कैसा लगा कमेंट मे जरूर बताए और इस पोस्ट को लोगो के साथ शेयर भी जरूर करे,

इन पोस्ट को भी पढे :-

शेयर करे

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *