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तैमूर लंग का इतिहास जीवन परिचय परिवार युद्ध आक्रमण और मृत्यु | History of Taimur Lang in Hindi

आज के इस पोस्ट मे तैमूरलंग का इतिहास History of Taimur Lang in Hindi के बारे मे जानेगे। वैसे तो हिंदुस्तान में सालो तक आक्रमण करने वाले और भारत को लूटने वाले क्रूर शासको की कई घटनाये प्रमुख है जिनमे तैमूरलंग का नाम प्रमुखता से आता है, तो चलिये यहा तैमूर लंग का इतिहास जीवन परिचय पत्नी युद्ध शासनकाल और मृत्यु | History of Taimur Lang in Hindi Taimur Lang Biography Jeevan Parichay Date Of Birth, Birth Place, Father, Mother, Wife Children, Fight, Mughal Empire Death जानेगे.

तैमूर लंग का इतिहास जीवन परिचय पत्नी युद्ध शासनकाल और मृत्यु की पूरी जानकारी

History of Taimur Lang in Hindi

History of Taimur Lang in Hindiइतिहास के पन्नों में कई ऐसे बहादुर योद्धा रहे जिन्हें आज भी गर्व से याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने ना केवल दुनिया के सामने बहादुरी की मिसाल कायम की, वरन् समाज के हित में काम भी किया। किंतु दूसरी ओर कुछ योद्धा ऐसे भी थे, जिन्हें बहादुर तो कहा गया किंतु उनका नाम सुनते ही लोग थर-थर कांपने लगते हैं।

भारत में विदेशी आक्रमणकारियों का लम्बा इतिहास रहा है. मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गज़नवी, मुहम्मद गोरी और चंगेज खान आदि भारत में आकर अपनी क्रूरता का दृश्य बता चुके थे. अगला नाम था एक तुर्क शासक का नाम था तैमूर लंग इसका जन्म उज्बेकिस्तान के समरकंद में 1336 मे हुआ था.

इन योद्धाओं को इतिहास के पन्नों में ‘दरिंदा’ कहकर नवाजा जाता है। आज इन्हीं दरिंदों में से हम एक ऐसे योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपाहिज था लेकिन उसकी ये कमी कभी उसकी कमजोरी नहीं बनी।

तैमूर की शारीरिक विकलांगता कभी उसके आड़े नहीं आई। उसके कट्टर आलोचक भी मानते हैं कि तैमूरलंग में ताकत और साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था। वह 35 साल तक युद्ध के मैदान में लगातार जीत हासिल करता रहा। अपनी शारीरिक दुर्बलताओं से पार पाकर विश्व-विजेता बनने का ऐसा दूसरा उदाहरण इतिहास में नहीं है

इनमें से ही एक नाम है तैमूर लंग का, जो चौदहवीं शताब्दी का एक शासक था जिसने तैमूरी राजवंश की स्थापना की थी। उसका राज्य पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया होते हुए भारत तक फैला था। भारत के मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर तैमूर का ही वंशज था। तो आइए क्रूर हत्यारे तैमूर लंग के बारे मे जानते है –

तैमूर लंग का जीवन परीचय

Taimur Lang biography in Hindi

अमीर तैमूर का जन्म 8 अप्रैल, सन् 1336 ई. में ट्रांस-आक्सियाना में में कैश या ‘शहर-ए-सब्ज’ नामक स्थान में हुआ था। जन्म के समय उसका नाम तैमूर रखा गया था और तैमूर का अर्थ होता है ‘लोहा’। तैमूर का पिता अमीर तुर्गे बरलास तुर्कों की गुरगन या चगताई शाखा के तुर्कों का प्रधान था। आरंभ में तैमूर को सैनिक शिक्षा दी गई थी, इसलिए वह युद्ध-विद्या में निपुण था। उसके पिता अमीर तुर्गे ने इस्लाम कबूल कर लिया था, इसलिए तैमूर भी इस्लाम का कट्टर अनुयायी था। भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक जहीरुद्दीन बाबर इसी तैमूर का वंशज था।

वह एक साधारण चरवाहे परिवार में जन्म था, मगर दूसरा चंगेज खान बनकर वह काफिरों का नाश कर देने की सोच रखा करता है, कहते है दिल्ली को उसने एक दिन में मुर्दों का शहर बना दिया था, उसने एक लाख हिन्दुओं को बंदी बनाकर कत्ल करवा दिया था, तथा 10 हजार लोगो के सिर काटकर दीवार में चिनवा दिए थे.

तैमूरलंग का प्रारम्भिक जीवन

Early life of Taimur Lang in Hindi

भारत के इतिहास का सबसे क्रूर लुटेरा तैमूर लंग की कहानी बड़ी ही विचित्र है. उसका पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था, इसका बचपन एक चोर का रहा, वह भेड़े चुराया करता था.

तैमूरलंग जीवन की मुश्किलों से पार पाने में सफल रहा। पंद्रहवीं शताब्दी के सीरियाई इतिहासकार इब्ने अरबशाह के अनुसार तैमूर भेड़ चुराते हुए एक चरवाहे के तीर से घायल हुआ था। स्पेनिश राजदूत क्लेविजो के अनुसार वह सिस्तान के घुड़सवारों का सामना करते हुए उसका दाहिना पैर जख्मी हुआ था जिसके कारण वह जीवनभर लँगड़ाता रहा, बाद में उसका दाहिना हाथ भी जख्मी हो गया। वस्तुतः 1363 ई. में जब वह भाड़े के मजदूर के तौर पर खुरासान में पड़नेवाले खानों में काम कर रहा था, तो उसी समय उसके शरीर का दाहिना हिस्सा विकलांग हो गया था। उसका दाहिना पैर बाँयें पैर की अपेक्षा छोटा था। चलते समय उसे अपना दाहिना पाँव घसीटना पड़ता था। यही कारण है कि लोग उसे फारसी में तैमूर-ए-लंग (लंगड़ा तैमूर) कहने लगे थे। बाद में यही नाम बिगड़ते-बिगड़ते तैमूरलंग हो गया।

वह तुर्क था मगर स्वयं को चंगेज खां का अनुयायी मानकर उसकी राह पर चल पड़ा. तैमूर ने रूस से लेकर मध्य एशिया तक एक बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित कर लिया.

उसके भारत पर आक्रमण करने के कई कारण था. खिज्र खां आदि का आमंत्रण तथा सबसे प्रभावी कारण था, मुस्लिम शासकों द्वारा काफिर यानि हिन्दू जनता के साथ बरती जाने वाली सहानुभूति ने इन्हें भारत पर आक्रमण कर हिन्दुओं का कत्लेआम कर उनकी सम्पति को लूट कर ले जाना उसका लक्ष्य था.

‘तुजुके तैमुरी’ यह तैमूर की आत्मकथा थी, जिसमें वह कुरान की पहली आयत से इसकी शुरुआत करते हुए लिखता है  ‘ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सख्ती बरतो।

यानि वो इसे एक धार्मिक युद्ध मानता है जिससे वह इस्लामी सैनिकों को हिन्दुओं की धन धौलत व मान मर्यादा को छिनकर दिलाना चाहता था.

तैमूर लंग का परिवार

Taimur Lang family in Hindi

लंग का जन्म शासकों के परिवार में नहीं हुआ था, तैमूर लंग सामान्य परिवार में जन्मा था और लंगड़ा होने के कारण इसका नाम तैमूर लंग पड़ा।

तैमूर के पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था। और तैमूर ने बरलस तुर्क खानदान में जन्म लिया था। तैमूर की माता का नाम तकीना खातुन था।

तैमूर लंग का व्यक्तित्व

Personality of Taimur Lang in Hindi

माना जाता है कि तैमूर लंग बचपन से ही छोटी-मोटी चोरियां करता था और समय के साथ साथ वह धीरे-धीरे लुटेरों के साथ शामिल हो गया।

तैमूर लंग एक विश्व विजेता बनना चाहता था जिसके कारण उसने भारत के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों में पैशाचिक क्रूरता दिखाई,  लंग एक वहशी व्यक्तित्व वाला शासक था, इसने जगह-जगह पर लोगों को मारकर नर मुंडो के बड़े-बड़े ढेर लगाए थे।

तैमूर का अर्थ

Meaning of Taimur in Hindi

तैमूर शब्द एक ऐसा शब्द है जो कि अक्सर लोगों के द्वारा बच्चों को नाम देने के लिए किया जाता है, तैमूर शब्द का अरबी भाषा में अर्थ लोहा होता है। लोहा अर्थ के साथ-साथ तैमूर शब्द का अर्थ ताकतवर, बहादुर, मजबूत आदि भी हो सकता ह।

तैमूर लंग का बगदाद पर अधिकार

Taimur Lang’s right over Baghdad in Hindi

तैमूर ने सबसे पहले सन 1380 में इराक की राजधानी बगदाद पर हमला बोला था, जहां हजारों लोगों का कत्ल कर उनकी खोपड़ियों के ढेर लगा दिए थे। फिर उस ने एक के बाद एक कई खूबसूरत राज्यों को खंडहर में बदल दिया। कटे हुए सिरों के बड़े-बड़े ढेर लगाने में उसे ख़ास मजा आता था।

कई देशों में लूटपाट के दौरान तैमूर ने न सिर्फ धन-दौलत जमा की, बल्कि उसने बड़ी फौज़ भी तैयार कर ली थी। तैमूर एक तेज दिमाग व बहादुर लीडर भी था, जिसके चलते सिपाही उसकी बहुत इज्ज़त करते थे। वह हर जंग में अगली लाइन में खड़ा होता था और यह बात सिपाहियों के दिल में जोश भर कर देती थी।

तैमूर लंग का समरकंद पर अधिकार

Taimur Lang’s right over Samarkand in Hindi

तैमूरलंग एक बहुत ही प्रतिभावान और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह चंगेज का वंशज होने का दावा करता था, जबकि वह तुर्क था। 1369 ई. में समरकंद के मंगोल शासक के मर जाने पर उसने समरकंद की सत्ता पर अधिकार कर लिया। वह चंगेज खाँ की तरह समस्त संसार को अपनी शक्ति से रौंद डालना चाहता था और सिकंदर की तरह विश्व-विजय की अभिलाषा रखता था। उसने चंगेज खाँ की पद्धति पर अपनी सैनिक व्यवस्था को स्थापित किया और अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। उसका राज्य पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया होते हुए भारत तक फैला हुआ था। 1380 और 1387 ई. के बीच उसने खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान, फारस, अजरबैजान और कुर्दीस्तान आदि पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन किया। 1393 ई. में उसने मेसोपोटामिया पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। इन विजयों से उत्साहित होकर उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

तैमूर के समय दिल्ली सल्तनत की स्थिति

Condition of Delhi Sultanate at the time of Timur in Hindi

तैमूर के भारत पर आक्रमण के समय दिल्ली का राज्य विघटित एवं अस्त-व्यस्त अवस्था में था। फिरोजशाह के निर्बल उत्तराधिकारियों के कारण दिल्ली सल्तनत की स्थिति बड़ी शोचनीय थी। 1388 से 1394 ई. तक तीन सुल्तान सिंहासन पर आये और गये। सिद्धांत-शून्य सरदारों ने अपनी स्वार्थ-साधना में राजनैतिक अराजकता को बढ़ावा दिया।

नसरतशाह फिरोजाबाद में रहकर दिल्ली पर अधिकार करने की योजनाएँ बनाता रहता था, दिल्ली में दुर्बल महमूद तुगलक अपने सरदारों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया था। प्रायः सभी मुस्लिम सूबेदार एवं हिंदू नायक सुल्तान की प्रभुता की अवहेलना कर अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना करने में लगे थे।

तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण

Timur Lang’s invasion of India in Hindi

तैमूर के भारत हमले की पूरी जानकारी उसकी जीवनी ‘तुजुके तैमुरी‘ में मिलती है। जीवनी की शुरुआत वो कुरान की इस आयत से शुरू करता है – ‘ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बरतो।‘ भारत पर हमला करने के संबंध में वो लिखता है – ‘हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें।‘

तैमूरलंग ने 1398 ई. के प्रारंभ में अपने एक पोते पीर मोहम्मद को भारत पर आक्रमण के लिए रवाना किया। उसने सिंधु नदी को पारकर उच्छ प्रदेश पर अधिकार कर लिया। उसने मुलतान पर घेरा डाल दिया और छः महीने के बाद इसे भी जीत लिया।

मुल्तान विजय के बाद अप्रैल, 1398 ई. में तैमूरलंग समरकंद से स्वयं एक भारी सेना लेकर भारत पर आक्रमण के लिए चला और सितंबर में उसने सिंधु, झेलम तथा रावी नदी को पार कर लिया। 13 अक्टूबर को वह मुलतान से 70 मील उत्तर-पूरब में स्थित तुलुंबा नगर पहुँच गया। उसने इस नगर को लूटकर भीषण कत्लेआम किया और बहुतों को गुलाम बना लिया। उसने कश्मीर की सीमा पर कटोरनामी दुर्ग पर आक्रमण किया और काफिरों के कटे सिरों की मीनार बनाने का आदेश दिया। और फिर उसने एक जगह उसने दो हजार जिन्दा आदमियों की एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया. इसके बाद वह दीपालपुर जीतता हुआ भटनेर पहुँच गया।

मध्यकालीन भारत के राजपूती राज्यों में उस समय केसरिया और जौहर की प्रथा थी. 15 दिन तक तैमूर दिल्ली में रहा, उसने हिन्दुओं को अपना निशाना बनाया उसकी मारकाट के बाद दिल्ली मुर्दों का शहर बनकर रह गई थी. उसने अपनी राह में आये भटनेर दुर्ग पर भयानक हमला किया तथा कत्लेआम मचाया.

भटनेर के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया, किंतु उनके असावधान होते ही तैमूर ने उन पर आक्रमण कर दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि ‘थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में 10,000 (दस हजार) लोगों के सिर काट दिये गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकट्ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगाकर राख कर दिया गया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात् कर दिया गया। दूसरा नगर सरसुती था, जिस पर आक्रमण हुआ। सभी काफिर हिंदू कत्ल कर दिये गये। उनके स्त्री, बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई।’

वो अपनी जीवनी में इस नरसंहार के बारे में लिखता है इस्लामी तलवार ने काफिरों के खून से स्नान किया, एक घंटे में दस हजार विधर्मियों का कत्ल कर दिया गया. दुर्ग में इकट्ठा सामग्री एवं धन सम्पति को लूटकर महल को आग के हवाले कर दिया गया.

तैमूर लंग ने दिल्ली से सटे लोनी नगर को भी अपनी क्रूरता का शिकार बनाया, यहाँ के हिन्दू शासक के मार दिया. सम्पूर्ण प्रजा तथा दरबार को अपना बंदी बना दिया. लोनी नगर से तैमूर ने एक लाख लोगों को बंदी बनाया, जिसमें कुछ मुस्लिम भी थे.

उसने पहले तो सभी हिन्दुओं का नरसंहार करने का आदेश दे दिया. तथा बाद में उसे किसी ने सलाह दी कि युद्ध बंदियों को ऐसे ही छोड़ देना भी ठीक नही है. तब उसने कड़े आदेश के जरिये उन मुस्लिम बंदियों के सर कलम करवा दिए.

दिल्ली की ओर बढ़ते हुए तैमूर ने जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि ‘जो भी मिल जाए, कत्ल कर दिया जाये।’ सेना के सामने आनेवाले सभी ग्राम या नगर बेरहमी से लूटे गये। पुरुषों को कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया। वहाँ हिंदुओं के अनेक मंदिर नष्ट कर डाले गये। इस प्रकार सिरसा और कैथल को लूटता-खसोटता और निवासियों को कत्ल तथा कैद करता हुआ तैमूर दिसंबर के प्रथम सप्ताह के अंत में दिल्ली के निकट पहुँच गया।

तैमूरलंग का दिल्ली पर आक्रमण

Timur Lang’s invasion of Delhi in Hindi

दिल्ली पहुँचने पर तैमूरलंग ने आदेश दिया कि मुसलमान बंदियों को छोड़कर शेष सभी बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे, उसे भी कत्ल कर दिया जाए और उसकी संपत्ति सूचना देनेवाले को दे दी जाये। यहाँ लगभग एक लाख हिंदू बंदी बनाकर कत्ल किये गये। 17 दिसंबर, 1398 ई. को दिल्ली के निर्बल तुगलक सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद ने अपने वजीर मल्लू इकबाल के साथ चालीस हजार पैदल सिपाही, दस हजार घुड़सवार और एक सौ बीस हाथियों की एक विशाल सेना लेकर पानीपत के पास तैमूर का सामना करने का प्रयत्न किया, किंतु वह बुरी तरह पराजित हुआ और भयभीत होकर गुजरात की ओर भाग गया। उसका वजीर मल्लू इकबाल भी भागकर बरन में जाकर छिप गया।

दूसरे दिन तैमूर ने दिल्ली में बड़ी धूमधाम से प्रवेश किया। उसे पता चला कि आस-पास के देहातों से भागकर हिंदुओं ने बड़ी संख्या में अपने स्त्री-बच्चों तथा मूल्यवान् वस्तुओं के साथ दिल्ली में शरण ली है। उसने सिपाहियों कोे दिल्ली को लूटने की आज्ञा दी। ‘जफरनामा’ के लेखक यजदी ने इस आक्रमण के संबंध में लिखा है कि ‘यहाँ भारत के सैनिकों ने अपने जीवन की रक्षा के लिए वीरतापूर्वक युद्ध किया, किंतु दुर्बल कीड़ा आँधी के सामने नहीं टिक सकता और न दुर्बल हिरन भयंकर सिंह के सामने, इसलिए वे भी भागने के लिए मजबूर हुए।’ दिल्ली के सुल्तानों की राजधानी पर दुर्भाग्य छा गया।

इस भाग्यहीन नगर के बहुत से निवासियों को भयंकर निर्दयता से कत्ल कर दिया गया अथवा बंदी बना लिया गया। ‘तफरनामा’ का लेखक लिखता है कि ‘नगर को नष्ट करना और उसके निवासियों को दंड देना ईश्वरीय इच्छा थी……हिंदुओं के सिरों को काटकर ऊँचे ढेर बना दिये गये तथा उनके धड़ों को हिंसक पशुओं तथा पक्षियों के लिए छोड़ दिया गया। जो निवासी किसी प्रकार बच गये, वे बंदी बना लिये गये।’ किसी विजेता द्वारा किसी एक आक्रमण में भारत को अभी तक इतना अधिक कष्ट नहीं मिला था। इस संकटपूर्ण परिस्थिति में प्रकृति ने भी दिल्ली के लोगों के साथ निष्ठुरता दिखाई तथा रक्तमय युद्धों एवं विनाश के द्वारा हुए उनके कष्ट को और बढ़ा दिया। बदायूँनी लिखता है कि ‘इस समय दिल्ली में ऐसी महामारी फैली कि नगर पूर्णतः नष्ट हो गया तथा जो निवासी बचे, वे भी मर गये और दो महीनों तक तो एक पक्षी ने भी दिल्ली में पंख नहीं फड़फड़ाया।’

तैमूर को दिल्ली की लूट में अतुल संपत्ति मिली, जिसमें लाल, हीरे, मोती, जवाहरात, अशर्फियाँ, सोन-चाँदी के सिक्के, कीमती बर्तन, रेशम और जरीदार कपड़े आदि थे। स्त्रियों के सोने-चाँदी के गहनों की कोई गिनती संभव नहीं थी। इसके साथ वह अनेक स्त्रियों और शिल्पियों को भी बंदी बनाकर ले गया। इन कारीगरों ने समरकंद में अनेक इमारतें बनाईं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध तैमूर की स्वनियोजित मस्जिद भी है। तैमूर का भारत में रहने का इरादा नहीं था। दिल्ली में पंद्रह दिनों तक ठहरने के बाद वह 1 जनवरी, 1399 ई. को फिरोजाबाद होते हुए स्वदेश के लिए रवाना हो गया।

तैमूरलंग का मेरठ और हरिद्वार मे लूट

Timurlang looted in Meerut and Haridwar in Hindi

दिल्ली से लौटते हुए राह में तैमूरलंग ने 9 जनवरी, 1399 ई. को मेरठ पर धावा बोल दिया और नगर की लूटपाट और हत्या का तांडव करने के बाद उत्तर में बढ़कर हरिद्वार के पाश्र्व में दो हिंदू सेनाओं को पराजित किया।

तैमूरलंग का जम्मू पर आक्रमण

Taimurlang’s invasion of Jammu in Hindi

शिवालिक पहाडि़यों के किनारे से बढ़ता हुआ तैमूर 16 जनवरी, 1399 को काँगड़ा पहुँचा और उस पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने जम्मू पर चढ़ाई की। इन स्थानों को भी लूटा-खसोटा गया और असंख्य निवासियों का कत्ल किया गया। उसने अपने एक प्रतिनिधि खिज्र खाँ को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का शासक नियुक्त किया। 19 मार्च, 1399 ई. को सिंधु नदी को पारकर तैमूर अपने देश समरकंद लौट गया।

भारत से लौटने के बाद तैमूर से 1400 ई. में अनातोलिया पर आक्रमण किया और 1402 ई. में अंगोरा के युद्ध में आटोमान तुर्कों को पराजित किया। 1405 ई. में जब वह चीन के राजा मिंग के खिलाफ युद्ध के लिए रास्ते में था, तभी उसकी मृत्यु हो गई।

तैमूर के आक्रमण का प्रभाव

Effect of Timur’s Invasion in Hindi

तैमूरलंग के आक्रमण ने तुगलक साम्राज्य के विघटन को पूरा कर दिया। राजनीतिक अस्थिरता के कारण दिल्ली के प्रांत एक-एक कर स्वतन्त्र होने लगे। नसरतशाह को, जो अब तक दोआब में छिपा था, 1399 ई. में दिल्ली पर अधिकार जमाने की कोशिश की, किंतु वह मल्लू इकबाल द्वारा पराजितकर नगर से भगा दिया गया। 1401 ई. में दिल्ली लौटने पर मल्लू इकबाल ने सुल्तान महमूद के आमंत्रण पर धार से लौट आया। 12 नवंबर, 1405 ई. को खिज्र खाँ से युद्ध करते समय मल्लू इकबाल की मृत्यु हो गई। दुर्बल सुल्तान लगभग बीस वर्षों तक नाममात्र का शासन करता रहा।

तुगलक साम्राज्य लगभग मृतप्राय हो  गया। ख्वाजा जहाँ  जौनपुर का एक स्वतंत्र शासक था। बंगाल बहुत पहले ही स्वतंत्र हो चुका था। गुजरात में मुजफ्फर शाह किसी को स्वामी नहीं मानता था। मालवा में दिलावर खाँ ने लगभग राजसी शक्तियां धारण कर रखी थी। पंजाब व ऊपरी सिंध का शासन खिज्रखां तैमूर के वायसराय की भांति कर रहा था। समाना गालिब खाँ के पास था। कालपी और महोबा मुहम्मद खाँ के अधीन स्वतंत्र रियासतें बन चुकी थीं। इस समय मल्लू इकबाल बरन में था। कुछ समय के लिए नुसरतशाह दिल्ली का स्वामी बन बैठा परंतु मल्लू ने उसे उस स्थान से खदेड़ दिया और उसे मेवात में शरण लेने पर विवश कर दिया जहां कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।  यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि तैमूर के आक्रमण ने उस जगमगाते हुए तुगलक वंश का अंत कर दिया जिसके बाद 1414 में सैयद वंश को स्थान प्राप्त हुआ।

तैमूर ने भारत की समृद्धि को नष्ट कर दिया। दिल्ली , भटनेर, दीपालपुर, मेरठ व हरद्वार में कला के बड़े प्रासादों को नष्ट कर दिया गया। लूटमार , आगजनी आदि ने भारत को उसकी महान् सम्पत्ति से वंचित कर दिया।

तैमूर के आक्रमण ने हिंदुओं व मुसलमानों के बीच खाई को अधिक चौड़ा कर दिया। हिंदुओं पर उनके अत्याचारों के कारण मुसलमान लोग हिंदुओं को अपनी ओर ना कर सके क्योंकि हिंदू लोग उन्हें म्लेच्छ समझने लगे। तैमूर द्वारा हिंदुओं के हत्याकांड तथा उनके नरमुंडो से मीनारों के बनाए जाने ने कटुता को और भी बढ़ा दिया। तैमूर के आक्रमण ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे के निकट लाने वाली बात को और भी अधिक असंभव बना दिया।

तैमूर के आक्रमण का यह प्रभाव पड़ा कि भारतीय कला को केंद्रीय एशिया तक पहुंचने का अवसर मिला। तैमूर अपने साथ बहुत से शिल्पकार व कारीगर समरकंद ले गया जहां उन्हें मस्जिद व अन्य प्रासाद बनाने के लिए रखा गया।

तैमूर के आक्रमण का एक अन्य प्रभाव यह हुआ कि उसने मुगल विजय का मार्ग खोल दिया। बाबर तैमूर की नस्ल का था और उसने अपनी इसी नस्ल के कारण दिल्ली के सिंहासन पर दावा दिखाया। तैमूर की पंजाब व दिल्ली की विजय में बाबर ने अपनी भारतीय विजय की नैतिक व कानूनी तर्क सिद्धि पाई।

इस प्रकार भारत पर तैमूर के आक्रमण का अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ा। जहां तुगलक वंश लगभग मृतप्राय हो गया और उसके पश्चात 1414 में सैयद वंश का उदय हुआ। हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गई, क्योंकि तैमूर ने हिंदुओं के साथ अत्यंत बर्बरता दिखाई। जहां उनकी बेरहमी से हत्या की गयी, उसके साथ ही उनके धार्मिक स्थलों को भी तोड़ डाला गया। तैमूर ने भारत पर इतने गहरे घाव किए जिसके निशान वर्षों तक ना मिट सके।

तैमूर के भारत पर आक्रमण के कारण

Reasons for Timur’s invasion of India in Hindi

तैमूर लंग के साथ साथ भारत में बहुत से मुगलों ने आक्रमण किया, भारत में अक्सर दूसरे देशों के शासकों द्वारा आक्रमण किया जाता था और इन सभी आक्रमणों के पीछे बहुत से कारण थे जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं –

भारत एक ऐसा देश है जहां भारी मात्रा में अनाज का उत्पादन होता था, दूसरे देशों के शासक अक्सर भारत में अनाज के लिए आक्रमण करते थे और भारत से अनाज लूट कर अपने देश ले जाते थे।

अनाज के साथ-साथ तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण करने का दूसरा प्रमुख कारण भारत की धन-दौलत और कीमती खजाना था, तैमूर अक्सर जिस देश पर आक्रमण करता था, वहां से धन दौलत के साथ साथ और भी चीजें लूट कर ले जाता था।

लंग का मकसद विश्व विजेता बनना था और विश्व विजेता बनने के लिए विश्व के अलग-अलग देशों पर आक्रमण कर रहा था, विश्व विजेता बनना भी तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण करने का एक विशेष कारण था।

तैमूर लंग और इस्लाम

Taimur Lang and Islam in Hindi

तैमूर लंग एक ऐसा शासक था जो कि इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था, तैमूर लंग का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जिनके पूर्वजों ने बहुत समय पहले इस्लाम कबूल कर लिया था।

लंग इस्लाम का बहुत बड़ा अनुयायी था लेकिन वह विश्व विजेता बनने के लिए सभी धर्म के लोगों पर क्रूरता करता था। भारत में मुगल साम्राज्य कि स्थापना करने वाला शासक बाबर तैमूर का ही वंशज था।

तैमूर लंग की मृत्यु

Death of Taimur Lang in Hindi

तैमूर लंग सबसे ज्यादा क्रूर शासकों में से एक माना जाता है, हो सकता है आपने तैमूर लंग की क्रूरता की कहानियां सुनी हो। तैमूर लंग का जन्म अप्रैल 1336 में हुआ था और इस शासक की मृत्यु फरवरी 1404 में हुई थी।

उज्बेगिस्तान के लोग आज भी तैमूर को अपना हीरो मानते है और उसकी कई प्रतिमाएं (मूर्तियां) उज्बेगिस्तान के शहरों में लगी हुई हैं। उज्बेगिस्तान के इतिहास में तैमूर को एक हीरो की तरह पेश किया जाता है और उसके काले कारनामों के बारे में बिलकुल भी चर्चा नही की जाती।

तैमूर लंग की मृत्यु ओत्रार कजाकिस्तान मैं हुई थी और उनकी मृत्यु से जुड़ी बहुत सी कहानियां जुड़ी हुई हैं हालांकि तैमूर लंग की मृत्यु का सही कारण बहुत कम लोग जानते हैं।

तैमूर को एक अप्रैल 1405 में मौत के बाद उज्बेकिस्तान के समरकंद में मौजूद बाग गुर-ए-आमिर में दफन किया गया था. इस क्रूर शासक के किस्से उसकी मौत के साथ ही समाप्त नही हो गये थे. बल्कि एक नई कहानी उसकी कब्र को लेकर शुरू हो गई.

कहते है नादिरशाह उस कब्र की बेशकीमती पत्थर को अपने साथ ले गया था. 1740 में ले जाये गये इस पत्थर से नादिरशाह के साथ बुरा होने शुरू हो गया, धार्मिक सलाहकारों के अनुसार उसे वापिस जाकर कब्र में रखा तब उसके हालातों में सुधार आया.

तैमूर की कब्र दूसरी बार 1949 में रूस के राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन ने खुदवाई. उस कब्र को खोदते समय पुरातत्ववेत्ताओं को दो वोर्निंग लिखी मिली, जिसमें लिखा तो वह अपनी मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो जाएगा.

हालांकि उन्होंने इस ओर विशेष ध्यान दिया दिया. यह संयोग ही था कि 22 जून 1941 के दिन हिटलर ने सोवियत रूस पर हमला कर दिया, जानकारों के अनुसार यह कब्र खोदने का परिणाम ही था. अतः उसे 20 दिसंबर 1942 को फिर से दफन करते ही जर्मनी ने आत्म समर्पण कर दिया.

सन 1941 में रूस के पुरातत्वविदों ने तैमूर के मकबरे की खुदाई कर उसके कंकाल का अध्ययन किया और पाया कि उसकी कूल्हे की हड्डी टूटी हुई थी और दाएं हाथ की दो उंगलियां गायब थी। उसके कंकाल से यह भी पता चला कि उसकी लंबाई 5 फुट 9 इंच थी और छाती चौड़ी थी।

तैमूर लंग की मौत का कारण

Cause of death of Taimur Lang in Hindi

तैमूर लंग की मौत से जुड़ी बहुत सी कहानियां है, कुछ लोगों का मानना है कि तैमूर लंग की मौत उसके भारत में आक्रमण करने के दौरान लगी चोट से हुई,

माना जाता है कि जब तैमूर भारत में दिल्ली पर आक्रमण कर मेरठ और हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था तो हरवीर सिंह गुलिया जाट और जोगराज सिंह गुर्जर के साथ अन्य योद्धाओं ने मिलकर तैमूर लंग की सेना का सामना किया,

इसी दौरान किसी एक योद्धा ने तैमूर लंग के सीने पर भाले से प्रहार किया, जिसके कारण तैमूर लंग के वापस अपने देश जाने के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

कुछ लोगों का मानना है कि तैमूर लंग विश्व विजेता बनना चाहता था और एशिया के बड़े भाग को जीतने के बाद तैमूर लंग ने चीन पर आक्रमण किया, और माना जाता है कि इसी दौरान साधारण जुकाम से तैमूर लंग की मृत्यु हो गई थी।

क्रूर योद्धा तैमूरलंग से जुड़े कुछ रौंगटे खड़े करने वाले तथ्य

Some shocking facts related to the ferocious warrior Taimurlang in Hindi

तो आइए अब क्रूर योद्धा तैमूरलंग से जुड़े कुछ रौंगटे खड़े करने वाले तथ्य (Some shocking facts related to the ferocious warrior Taimurlang in Hindi) को जानते है :-

  • वह चौदहवी शताब्दी का एक तुर्क शासक था जिसने बाद में उसने तैमूरी राजवंश की स्थापना की थी। तैमूरलंग को इतिहास में एक वहशी क्रूर खूनी योद्धा के नाम से जाना गया। कहते हैं कि वह युद्ध में उतरते ही बड़ी गिनती में लाशें बिछा देता था। उसने कई युद्ध जीते और कई राज्यों को अपने कब्जे में लिया। वह योद्धाओं के सिर धड़ से अलग करके उन्हें जमा करने का शौक रखता था।
  • सन् 1369 में समरकंद के मंगोल शासक के मर जाने पर उसने समरकंद की गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद उसने विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। तैमूर की क्रूरता के कई किस्से मशहूर हैं। कहा जाता कि एक जगह उसने दो हजार ज़िंदा आदमियों की एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया।
  • उसे नर-मुंडों के बड़े-बड़े ढ़ेर लगवाने में ख़ास मज़ा आता था।
  • इतिहासकार यह मानते हैं कि तैमूर भारत में सिर्फ और सिर्फ इस्लाम का प्रचार करने आया था, लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है। असल में वह भारत का स्वर्ण और वह सभी कीमती सामान लूटने आया था, जो भारत की शान थी।
  • एक लड़ाई में तैमूर के शरीर का दाहिना हिस्सा बुरी तरह घायल हो गया था जिसके कारण वह कुछ लंगड़ा कर चलता था। इसलिए उसका नाम तैमूर+लंग पड़ा।
  • वह 35 साल तक युद्ध के मैदान में लगातार जीत हासिल करता रहा था।
  • कई देशों और राज्यों को चीरता तैमूर आखिरकार भारत की ओर भी रुख करने लगा। पूर्व में दिल्ली से लगाकर पश्चिम में एशिया-कोचक तक उसने लाखों आदमी क़त्ल कर डाले और उनके कटे सिरों को स्तूपों की शक्ल में जमवाया।
  • वह बहुत बड़ा योद्धा तो था ही लेकिन पूरा वहशी भी था। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था, लेकिन मुसलमानों से पाला पड़ने पर वह उनके साथ ज़रा भी नरमी नहीं बरतता था। जहाँ-जहाँ वह पहुँचा, उसने तबाही, बला और मुसीबत फैला दी थी।
  • 1405 में तैमूरलंग का मृत्यु हुआ था, तब वह चीन के राजा मिंग के ख़िलाफ युद्ध के लिए जा रहा था। मृत्यु के बाद उसे समरकंद में दफ़ना दिया गया था, जहां आज भी उसका मकबरा बना हुआ है।
  • सन 1941 में रूस के पुरातत्वविदों ने तैमूर के मकबरे की खुदाई कर उसके कंकाल का अध्ययन किया और पाया कि उसके कूल्हे की हड्डी टूटी हुई थी और दाएं हाथ की दो उंगलियां गायब थी। उसके कंकाल से यह भी पता चला कि उसकी लंबाई 5 फुट 9 इंच थी और छाती चौड़ी थी।

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