आज के इस पोस्ट मे भगवान कृष्ण के पावन जन्मभूमि मथुरा के कृष्ण जन्म भूमि का इतिहास और विवाद History of Krishna Janmabhoomi Controversy in Hindi के बारे मे जानेगे।
कृष्ण जन्म भूमि का इतिहास और विवाद
History of Krishna Janmabhoomi Controversy in Hindi
मशहूर कृष्ण जन्मभूमि मंदिर या कृष्ण जन्मस्थान हिन्दुओं के पूजन के लिए पावन धरती मानी जाती है। मंदिर परिशर के अन्दर एक कारागार जैसी संरचना है और ऐसा माना जाता है कि भगवान का जन्म यहीं हुआ था। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर जहाँगीर के शासन में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला द्वारा बनवाया गया था।
कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है जहाँ हिन्दू धर्म के अनुयायी कृष्ण भगवान का जन्म स्थान मानते हैं। यह विवादों में भी घिरा हुआ है क्योंकि इससे लगी हुई जामा मस्जिद मुसलमानों के लिये धार्मिक स्थल है।
भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का न केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षक मन्दिर के रूप में स्थापित है। पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ प्रतिदिन आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
कृष्ण जन्म भूमि का इतिहास
History of Krishna Janmabhoomi in Hindi
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी। दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था। उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था। कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसकी ही बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी। इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था। मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है।
श्रीकृष्ण की जन्मभूमि यानि मथुरा अपने आप में ही एक दिव्य और ऐतिहासिक स्थान है जो हिन्दुओं और आध्यात्मिक विषयों से जुड़े हुए लोगों के लिए एक वास्तव में पूजनीय जगह है| हम सभी इस बात से परिचित हैं कि मथुरा भगवान कृष्ण के जन्म के कारण ही जानी जाती है और यहाँ पर भगवान् द्वारा कंस का भी वध हुआ था |
और जिस स्थान पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, वहां पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था।इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था।
प्रथम बार कृष्ण जन्मभूमि पर कोई निर्माण अर्जुनायन शासक अरलिक वसु ने तोरण द्वार के रूप में करवाया था लेकिन यहां प्रथम मंदिर का निर्माण यदुवंशी राजा ब्रजनाम (भरतपुर नरेश के पूर्वज) ने 80 वर्ष ईसा पूर्व में कराया था। कालक्रम (हूण, कुषाण हमलों) में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई० में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव तोमर के शासन काल में हिन्दू जाट शासक जाजन सिंह ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मथुरा क्षेत्र में मगोर्रा के सामंत शासक थे इनका राज्य नील के व्यापार के लिए जाना जाता था। शासक जाजन सिंह तोमर (कुंतल) ने 1150 ईस्वी में करवाया। इस जाजन सिंह को जण्ण और जज्ज नाम से भी सम्बोधित किया गया है। इनके वंशज आज जाजन पट्टी, नगला झींगा, नगला कटैलिया में निवास करते है।
हालांकि, और पीछे जाने पर यह पता चलता है कि यहाँ का पहला मंदिर करीबन 5000 साल पहले भगवान कृष्ण के पड़पोते ने बनवाया था। उस समय जब इस मंदिर का रुबाब था ऐसा मानते हैं कि इसका यश शब्दों या चित्रकारी द्वारा बयां कर पाना मुश्किल था। वास्तविक मंदिर को ग़ज़नी के महमूद ने 1017 एडी में कई और मंदिर और बौद्द स्मारक की तरह ही बर्बाद कर दिया था।
इन सालों में इस मंदिर में कई संरचनात्मक बदलाव आये। आज मंदिर परिशर की वास्तुकला हिन्दू अंदाज़ में बनायी गयी है, औरंगज़ेब के शाशन के दौरान इस मंदिर के बाजू में एक मस्जिद का निर्माण किया गया ताकि इस मंदिर से ध्यान हटवाया जा सकता।
बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है।
1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ। इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से पुन: एक मंदिर स्थापित किया गया है, लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है, क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।
पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ लोग बड़ी तादाद में आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
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कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर
Krishna’s great-grandson Bajranabh built the first temple in Hindi
जनमान्यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था।
आम लोगों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।
विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर
Second big temple was built by Vikramaditya in Hindi
इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। यह भव्य मंदिर था।
उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था।
विजयपाल देव के शासनकाल में बना तीसरा बड़ा मंदिर, सिकंदर लोदी ने तुड़वाया
The third major temple built during the reign of Vijayapala Dev, was demolished by Sikandar Lodi in Hindi
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदिर बनवाया था।
उसने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।
जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार बना मंदिर, औरंगजेब ने तुड़वाया
Temple built for the fourth time during the reign of Jahangir, Aurangzeb demolished in Hindi
इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया।
कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।
यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था
इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फव्वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।
बिड़ला ने की श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना
Birla established Shri Krishna Janmabhoomi Trust in Hindi
- ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया।
- वर्ष 1940 में जब यहां पंडित मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए।
- इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा।
- बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।
- इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।
1982 में पूरा हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य
The construction work of the present temple was completed in 1982 in Hindi
ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया।
इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
मथुरा के बारह जंगल
Twelve forests of Mathura in Hindi
वराह पुराण एवं नारदीय पुराण ने मथुरा के पास के 12 वनों की चर्चा की है-
- मधुवन,
- तालवन,
- कुमुदवन,
- काम्यवन,
- बहुलावन,
- भद्रवन,
- खदिरवन,
- महावन (गोकुल),
- लौहजंघवन,
- बिल्व,
- भांडीरवन
- वृन्दावन।
इसके अलावा 24 अन्य उपवन भी थे। आज यह सारे स्थान छोटे-छोटे गांव और कस्बों में बदल गए हैं।
मथुरा के अन्य मंदिर
Other Temples in Mathura in Hindi
मथुरा में जन्मभूमि के बाद देखने के लिए और भी दर्शनीय स्थल है :- जैसे विश्राम घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा का मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना नदी के अन्य घाट, कंस का किला, योग माया का स्थान, बलदाऊजी का मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली, रमण रेती आदि।
कब-कब तोड़ा गया श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर
When was the Shri Krishna Janmabhoomi Temple demolished in Hindi
इतिहास बताता है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बना मंदिर अब तक तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है. इतिहास में पहली बार ग्यारहवीं सदी में मंदिर तोड़ने का जिक्र मिलता है. ये वो दौर था जब महमूद गजनी के पांव भारत में पड़े थे. इस दौर में देश भर में कई धार्मिक स्थलों में लूटपाट और विध्वंस हुआ था. 11वीं सदी से पहले तक सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का बनवाया भव्य मंदिर मथुरा में मौजूद था.
इतिहास में जिक्र मिलता है कि सन् 1017 में महमूद गजनवी ने आक्रमण कर दिया. इस दौरान मथुरा में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बनावए भव्य कृष्ण मंदिर को लूटने के बाद तोड़ दिया गया. इसके बाद कई सालों तक मंदिर उसी अवस्था में रहा. लेकिन फिर लगभग सवा सौ साल बाद सन् 1150 में राजा विजयपाल देव के शानसनकाल में मंदिर को दोबारा बनवाया गया. अबकी बार मथुरा में पहले से भी भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था. इतिहास बाताता है कि ये मंदिर अगले 400 साल तक अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ मथुरा में मौजूद था.
लेकिन 16वीं शताब्दी में सिकंदर लोदी के शासनकाल में मथुरा के भव्य कृष्ण मंदिर को एक बार फिर से तोड़ दिया गया. जब ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने कृष्ण जन्मस्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया. इतिहास में यहां मिले अवशेषों का ज़िक्र मिलता है. इन अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार मौजूद थी. मंदिर के दक्षिण-पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था. इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद हैं.
बताया जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन् 1669 में मंदिर को तुड़वा दिया. औरंगज़ेब ने मंदिर के एक भाग पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया. आने वाले कई सालों तक मंदिर उसी अवस्था में रहा. बताया जाता है ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया, लेकिन इस पर मंदिर का पुनर्निर्णाण नहीं हुआ.
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16 वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त किया गया मंदिर
Temple demolished by Sikandar Lodhi in the 16th century in Hindi
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है। शिलालेख के अनुसार मंदिर के व्यय के लिए दो मकान, छः दुकान और एक वाटिका भी दान दी गई दिल्ली के राजा के परामर्श से 14 व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जिसके प्रधान जाजन सिंह थे। यह मंदिर भी 16 वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।
फिर 1618 ई० में ओरछा के बुन्देला राजा वीरसिंह जूदेव ने विशाल मन्दिर का निर्माण जन्म भूमि कराया यह मंदिर इतना विशाल था कि आगरा से दिखाई देता था। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। इस मंदिर को वीर गौकुला जाट ने नहीं गिराने दिया व उनके बलिदान के बाद ही इसे गिराया जा सका फिर जाटों ने मुगलो की राजधानी आगरा पर आक्रमण कर दिया था।
कृष्ण जन्मभूमि का विवाद
Krishna Janmabhoomi dispute in Hindi
उत्तर प्रदेश के मथुरा के सिविल कोर्ट में दायर इस परिवाद में एडवोकेट विष्णु जैन ने संपूर्ण कृष्ण जन्मभूमि पर दावा ठोकते हुए कहा है कि भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए यह पूरी भूमि पवित्र स्थान है. परिवाद में कृष्ण जन्मस्थान की पूरी 13.37 एकड़ की ज़मीन पर नए सिरे से दावा ठोकते हुए कहा गया है कि 1968 में समझौता हुआ था, जो मान्य नहीं हो सकता और यहां से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाया जाना चाहिए.
दावा किया गया है कि श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था और वह पूरा इलाका ‘कटरा केशव देव’ के नाम से जाना जाता है. कृष्ण जन्म की वास्तविक जगह वहां है, जहां मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन कमेटी ने निर्माण किया हुआ है. दावे में यह भी कहा गया है कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा में कृष्ण मंदिर को नष्ट करवाया था. जहां केशव देव मंदिर था, वहीं जो मस्जिद बनवाई गई, उसे ईदगाह के नाम से जाना जाता है.
इस परिवाद में मांग की गई है कि ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन कमेटी ने जो भी निर्माण इस इलाके में करवाए हैं, उन्हें हटवाया जाए. सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की सहमति से कमेटी के निर्माणों को अतिक्रमण कहते हुए दावा है कि कटरा केशव देव बस्ती पूरी तरह से ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ की है. इन निर्माणों को अवैध बताते हुए हटवाने की मांग के साथ ही इस परिवाद में यह भी मांग है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट ईदगाह और उससे जुड़े तमाम कर्मियों को यहां से हटाने की कवायद की जाए.
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कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद का विवाद का इतिहास
History of dispute of Krishna Janmabhoomi and Shahi Masjid in Hindi
श्रीकृष्ण जन्मभूमि का इतिहास समझना ज़रूरी है ताकि यह पूरा मामला साफ हो सके. बहुत पुरानी बात न करते हुए 1804 से समझते हैं, जब मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में आया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा की ज़मीन नीलाम की, जिसे 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा. राजा यहां मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. उनके वारिसों के पास ये ज़मीन रही.
राजा के वारिस राज कृष्ण दास के सामने इस ज़मीन को लेकर विवाद खड़ा हुआ. 13.37 एकड़ की इस ज़मीन पर मथुरा के मुस्लिमों ने केस लड़ा लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1935 में राज कृष्ण दास के हक में फैसला दिया. 1944 में यह ज़मीन दास से पंडित मदनमोहन मालवीय ने 13000 रुपये में ली, जिसमें जुगलकिशोर बिड़ला ने आर्थिक मदद दी. मालवीय की मृत्यु के बाद बिड़ला ने यहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया, जिसे बाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना गया.
जयदयाल डालमिया के सहयोग से बिड़ला ने इस ज़मीन पर मंदिर कॉम्प्लेक्स का निर्माण 1953 में शुरू करवाया. फरवरी 1982 में यह निर्माण पूरा हो सका. तीसरी पीढ़ी के अनुराग डालमिया ट्रस्ट के जॉइंट ट्रस्टी हैं. इस मंदिर कॉम्प्लेक्स में एक और उद्योगपति रामनाथ गोयनका का भी वित्तीय सहयोग रहा.
साल 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने इस ज़मीन पर मालिकाना हक न होने के बावजूद कई तरह के फैसले शुरू किए. 1964 में पूरी ज़मीन पर नियंत्रण के लिए सिविल केस दायर करने के बाद इस संस्था ने खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया था. समझौते के तहत दोनों पक्षों ने अपने हिस्से की कुछ ज़मीन एक दूसरे को सौंप दी. अब जिस जगह मस्जिद है, वह जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है.
इसके बाद मथुरा की सिविल कोर्ट में एक और वाद दायर हुआ था, जो श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और ट्रस्ट के बीच समझौता हो जाने पर बंद हो गया था. 20 जुलाई 1973 को कोर्ट ने यह निर्णय दिया था. अब ताज़ा परिवाद में कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देकर उसे रद्द किए जाने की मांग है और यह भी कि विवादित जगह को बाल श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाए.
1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद वृंदावन निवासी मनोहर लाल शर्मा ने मथुरा जिला अदालत में एक याचिका दाखिल कर 1968 के समझौते को चुनौती दी थी और धार्मिक पूजा स्थल एक्ट 1991 को अमान्य करने की मांग की थी, जिसके तहत 15 अगस्त 1947 के बाद से पूजास्थलों को यथास्थिति में रखने के प्रावधान हैं.
12 अक्टूबर 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता कर लिया। श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रतिनिधियों में समझौता किया गया। 17 अक्टूबर 1968 को इस समझौता पेश किया गया और 22 नवंबर 1968 को मथुरा सब रजिस्टार के यहां इसे रजिस्टर किया गया। 1968 समझौते के अनुसार, शाही ईदगाह कमिटी और श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार, जमीन ट्रस्ट के पास रहेगी और मस्जिद के प्रबंधन अधिकार मुस्लिम कमिटी को दिए जाएंगे। लेकिन अब याचिका में कहा गया है कि वो समझौता श्रीकृष्ण भक्तों की भावना के खिलाफ था। याचिका में कहा गया कि कटरा केशव देव की संपूर्ण संपत्ति ट्रस्ट की है और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को उसका मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता है। इसलिए उसके द्वारा किया गया समझौता यहां अवैध होगा। कटरा केशवदेव की संपत्ति पर शाही ईदगाह का किसी प्रकार का अधिकार नहीं हो सकता। इसिलिए उस पर किया गया निर्माण भी अवैध है। अब इसी आधार पर शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की बात की जा रही है।
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